Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Hansile dohe“ , “हँसीले दोहे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हँसीले दोहे
Hansile dohe

कोऊ कोटिक संग्रहौ, कोऊ लाख-पचीस।
राम, हमारी तौ बनी रहै चार सौ बीस॥

जाको राखे साइयाँ, मार सकै नहिं कोइ।
ज्यों-ज्यों मंत्री कोसिए, त्यों-त्यों मोटौ होइ॥

राम झरौखा बैठिकैं सबको मुजरा लैंइ।
सिकल देखिकैं ऊजरी, तुरतहि परमिट दैंइ॥

जप-तप-तीरथ मत करौ, बरतौ स्वेच्छाचार।
नरकहु में अब खुलि गए, नामी चोर-बाजार॥

कृष्ण चले बैकुंठ कौं, राधा पकरी बाँहि।
‘ब्लैकमेल’ ह्‌याँ कर चलौ, वहाँ सुभीतौ नाँहि॥

देखत ही हरखै नहीं, भूलै सकल सनेह।
जेब-खर्च कौ नाम सुनि, बीवी धक्का देइ॥

तुलसी या संसार में, कर लीजै दो काम।
लैबे कूँ सब कुछ भलौ, दैबे कूँ न छदाम॥

कबिरा नौबत आपनी, दिन दस लेउ बजाइ।
अगले आम चुनाव में, कुर्सी मिलनी नाँइ॥

ठेकेदारी में बढ़े चाम, दाम अरु नाम।
दोऊ हाथ समेटिए, यही सयानौ काम॥

‘पदम विभूषण’ ना भए, देख्यौ ‘पेपर’ छान।
कबहुँक दीनदयाल के भनक परैगी कान॥

पड़े रहैं दरबार में, धका धनी के, खाँइ।
अबकै ‘सर’ है जाइँगे, पैर रहेंगे नाँइ॥

तनखा थोरी मिलत है, पत्रकार चिल्लाहिं।
रहिमन करुए मुखन कौं चहियत यही सजाहि॥

अरजी दै-दै जग मुआ, नौकर भया न कोय।
पढ़ै खुसामद कौ सबक, नौकर मालिक होय॥

रूठौ ‘पाक’ मनै नहीं, लाख मनाऔ कोय।
रहिमन बिगरे दूध कौ मथै न माखन होइ॥

जब लगि ही जीबौ भलौ, फलै चार सौ बीस।
बिना चार सौ बीस के, जीवन तेरह-तीस॥

टिकट प्राप्ति के कारनै, सब धन डारौ खोइ
मूरख जानैं लुट गयौ, लाख चौगुनौ होइ॥

एक घड़ी, आधी घड़ी, आधिहु में पुनि आध।
संगत मंत्री-पुत्र की, हरै कोटि अपराध॥

अर्थ न धर्म, न काम-रुचि, पद न चहौं निर्बान।
पै ‘तिकड़म’ में सफलता, दीजै दयानिधान॥

ज्वार-मका की रोटियाँ, घासलेट कौ घी।
रूखी-सूखी खाइकैं, नल कौ पानी पी॥

कौन करै अब नौकरी, कौन करै व्यापार।
राम सलामत जो रखै, जुग-जुग चोर बाजार॥

साँकर घर की लग गई, रात भई जो देर।
रहिमन चुप ह्‌वै बैठिए, देख दिनन के फेर॥

सियावर रामचन्द्र की जय!

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