नये अर्थ की प्यास में
Naye Arth ki pyas me
मन का गोताख़ोर डूब गया उभरकर
भँवर में अविश्वास के
हुआ ही कुछ तो यह हुआ कि
उमड़ लिये धारा के ऊपर–ऊपर
संदर्भों के घन और फिर वे भी
झंझावत में उड़ गये
बरस लिये शायद जाकर किन्हीं
अनजाने मैदानों में
और छू गई अगर आकर ठंडी हवा
उन प्रांतरों की तो छटपटाये
नये अर्थों के लिए डूबे–डूबे शब्द
छूकर ठंडी हवा
पानी की लकीरें बनकर
रह गये डूबे–उभरे शब्द
सन्दर्भों भरी भँवरी से
वापिस ही नहीं हुए
मोती के लिए ताल तक पैठे हुए
मछुए!