Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “  Lafaz me banam nirala“ , “लफ्फा़ज़ मैं बनाम निराला” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

लफ्फा़ज़ मैं बनाम निराला

 Lafaz me banam nirala

 

एक तस्वीर!

मेरे मन में है एक ऐसी झाँकी

जो मेरे शब्दों ने कभी नहीं आँकी

शायद इसीलिए

कि, हो नही पाता मेरे किए

लाख शब्दों का कुछ-

न उपन्यास

न महाकाव्य!

तो क्या कूँची उठा लूँ

रंग दूँ रंगों में निराला को?

आदमियों में उस सबसे आला को?

किन्तु हाय,

उसे मैंने सिवा तस्वीरों के

देखा भी तो नहीं है?

कैसे खीचूँ, कैसे बनाऊँ उसे

मेरे पास मौलिक कोई

रेखा भी तो नहीं है?

उधार रेखाएँ कैसे लूँ

इसके-उसके मन की!

मेरे मन पर तो छाप

उसकी शब्दों वाली है

जो अतीव शक्तिशाली है-

‘राम की शक्ति पूजा’

‘सरोज-स्मृति’

यहाँ तक कि ‘जूही की कली’

अपने भीतर की हर गली

इन्हीं से देखी है प्रकाशित मैंने,

और जहाँ रवि न पहुँचे

उसे वहाँ पहुँचने वाला कवि माना है,

फिर भी कह सकता हूँ क्या

कि मैंने निराला को जाना है?

सच कहो तो बिना जाने ही

किसी वजह से अभिभूत होकर

मैंने उसे

इतना बड़ा मान लिया है-

कि अपनी अक्ल की धरती पर

उस आसमान का

चंदोबा तान लिया है

और अब तारे गिन रहा हूँ

उस व्यक्ति से मिलने की प्रतीक्षा में

न लिखूंगा हरफ, न बनाऊंगा तस्वी्र!

क्यों कि‍ हरफ असम्भव है,  तस्वीर उधार

और मैं हूँ आदत से लाचार-

श्रम नहीं करूँगा

यहाँ तक

कि निराला को ठीक-ठीक जानने में

डरूँगा, बगलें झाँकूँगा,

कान में कहता हूँ तुमसे

मुझ से अब मत कहना

मैं क्या खाकर

उसकी तस्वीर आँकूँगा!

 

 

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