आँसू बहाकर
Aansu bahakar
दर्द के हम भगीरथ
तप-बल बढ़ाकर
नदी का उत्सव बने
आँसू बहाकर
उजाले की शक्ल में
पसरा अँधेरा
इसी करतब पर
हुआ है यह सवेरा
अर्घ्य देते सूर्य को
गंगा नहाकर
यह प्रवाहित जल
हमारी ज़िन्दगी है
सतह पर जिसके
अबाधित गंदगी है
जी रहे
उच्छिप्ट को सपना बनाकर
शक्तिपीठों के शिखर
पुल बांध जाएँ
एक बिजलीघर
उसी पर साध जाएँ
खड़े खंभे गड़े
गहराई थहाकर