घाटी की चिन्ता
Ghati ki chinta
सरिता जल में
पैर डाल कर
आँखें मूंदे, शीश झुकाए
सोच रही है कब से
बादल ओढ़े घाटी।
कितने तीखे अनुतापों को
आघातों को
सहते-सहते
जाने कैसे असह दर्द के बाद-
बन गई होगी पत्थर
इस रसमय धरती की माटी।
घाटी की चिन्ता
Ghati ki chinta
सरिता जल में
पैर डाल कर
आँखें मूंदे, शीश झुकाए
सोच रही है कब से
बादल ओढ़े घाटी।
कितने तीखे अनुतापों को
आघातों को
सहते-सहते
जाने कैसे असह दर्द के बाद-
बन गई होगी पत्थर
इस रसमय धरती की माटी।