Hindi Poem of Agyey “Udhar, “उधार ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

उधार – अज्ञेय

Udhar  -Agyey

 

सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी

 और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।

 मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार

 चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?

मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—

तिनके की नोक-भर?

शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—

किरण की ओक-भर?

मैने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास,

लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास।

 मैने आकाश से मांगी

 आँख की झपकी-भर असीमता—उधार।

सब से उधार मांगा, सब ने दिया ।

 यों मैं जिया और जीता हूँ

 क्योंकि यही सब तो है जीवन—

गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला,

गन्धवाही मुक्त खुलापन,

लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह,

और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का:

ये सब उधार पाये हुए द्रव्य।

रात के अकेले अन्धकार में

 सामने से जागा जिस में

 एक अनदेखे अरूप ने पुकार कर

 मुझ से पूछा था: “क्यों जी,

तुम्हारे इस जीवन के

 इतने विविध अनुभव हैं

 इतने तुम धनी हो,

तो मुझे थोड़ा प्यार दोगे—उधार—जिसे मैं

 सौ-गुने सूद के साथ लौटाऊँगा—

और वह भी सौ-सौ बार गिन के—

जब-जब मैं आऊँगा?”

मैने कहा: प्यार? उधार?

स्वर अचकचाया था, क्योंकि मेरे

 अनुभव से परे था ऐसा व्यवहार ।

 उस अनदेखे अरूप ने कहा: “हाँ,

क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार हैं—

यह अकेलापन, यह अकुलाहट,

यह असमंजस, अचकचाहट,

आर्त अनुभव,

यह खोज, यह द्वैत, यह असहाय

विरह व्यथा,

यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना

 कि जो मेरा है वही ममेतर है

 यह सब तुम्हारे पास है

 तो थोड़ा मुझे दे दो—उधार—इस एक बार—

मुझे जो चरम आवश्यकता है।

उस ने यह कहा,

पर रात के घुप अंधेरे में

 मैं सहमा हुआ चुप रहा; अभी तक मौन हूँ:

अनदेखे अरूप को

 उधार देते मैं डरता हूँ:

क्या जाने

 यह याचक कौन है?

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