कांस्य युग
Kansya Yug
सिंधु घाटी सभ्यता का विकास ताम्र पाषाण युग में ही हुआ था, पर इसका विकास अपनी समकालीन सभ्यताओं से कहीं अधिक हुआ । इस काल में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम में 2500 ई.पू. से 1700 ईं पू. के बीच एक उच्च स्तरीय सभ्यता विकसित हुई जिसकी नगर नियोजन व्यवस्था बहुत उच्च कोटि की थी । लोगो को नालियों तथा सड़को के महत्व का अनुमान था । नगर के सड़क परस्पर समकोण पर काटते थे । नगर आयताकार टुकड़ो में बंट जाता था । एक सार्वजनिक स्नानागार भी मिला है जो यहां के लोगो के धर्मानुष्ठानों में नहाने के लिए बनाया गया होगा । लोग आपस में तथा प्राचीन मेसोपोटामिया तथा फ़ारस से व्यापार भी करते थे ।लोगों का विश्वास प्रतिमा पूजन में था । लिंग पूजा का भी प्रचलन था पर यह निश्चित नहीं था कि यह हिन्दू संस्कृति का विकास क्रम था या उससे मिलती जुलती कोई अलग सभ्यता । कुछ विद्वान इसे द्रविड़ सभ्यता मानते हैं तो कुछ आर्य तो कुछ बाहरी जातियों की सभ्यता ।
सिंधु घाटी सभ्यता(३३००-१७०० ई.पू.) यह हड़प्पा संस्कृति विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। इसका विकास सिंधु नदी के किनारे की घाटियों में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा , चन्हुदडो , रन्गपुर् , लोथल् , धौलाविरा , राखीगरी , दैमाबाद , सुत्कन्गेदोर, सुरकोतदा और हड़प्पा में हुआ था। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।