पानीपत का दूसरा युद्ध
Second War of Panipat
पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवम्बर, 1556 ई. को अफ़ग़ान बादशाह आदिलशाह सूर के योग्य हिन्दू सेनापति और मंत्री हेमू और अकबर के सेनापति बैरम खान बीच हुई। इस लड़ाई के बाद भी एक नए युग की शुरूआत हुई और भारतीय इतिहास के कई नए अध्याय खुले। इस लड़ाई के फलस्वरूप दिल्ली के तख़्त के लिए मुग़लों और अफ़ग़ानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुग़लों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक दिल्ली का तख़्त मुग़लों के पास ही रहा।
आदिलशाह शेरशाह सूरी वंश का अंतिम सम्राट था और ऐशोआराम से सम्पन्न था। लेकिन, उनका मुख्य सेनापति हेमू अत्यन्त वीर एवं समझदार था। उसने अफगानी शासन को मजबूत करने के लिए 22 सफल लड़ाईयां लड़ी। 22 वें युद्ध में दिल्ली के तुगलकाबाद मैदान में 6 अक्टूबर 1556 को मुगलों को हराने के बाद उनके अधीनस्थ सेना नायकों ने 7 अक्टूबर 1955 को दिल्ली में उनका राज्याभिषेक कर दिया क्योंकि सूरी वंश में सम्राट बनने लायक उस समय कोई नहीं रह गया था। वह विक्रमादित्य’ की पदवी धारण कर दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठ गया। अब हेमू सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य हो गया । उसने मुग़लों को हराकर दिल्ली पर स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना करने का निश्चय किया।
उसने मुग़ल सरदारों से युद्ध किये और उन्हें दिल्ली से खदेड़ पर पंजाब की ओर भगा दिया। मुग़ल सरदार जाने को तैयार नहीं थे। वे एक बार फिर बड़ा युद्ध कर अंतिम निर्णय करना चाहते थे। 15 नवंबर 1556 को अकबर के संरक्षक बैरम खां के साथ मुगल सेना ने फिर से चुनौती दी। मुग़ल सेन ने खानजमाँ अलीकुलीख़ाँ और बैरमख़ाँ के नेतृत्व में पानीपत में युद्ध करने का निश्चय किया। हेमचंद्र भी सेना सहित लड़ने पहुँच गया। दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ।
सैन्य बल के मामले में हेमू का पलड़ा भारी था। इतिहासकारों के अनुसार हेमू की सेना में कुल एक लाख सैनिक थे, जिसमें 30,000 राजपूत सैनिक, 1500 हाथी सैनिक और शेष अफगान पैदल सैनिक एवं अश्वारोही सैनिक थे। जबकि अकबर की सेना में मात्र 20,000 सैनिक ही थे। दोनों तरफ के योद्धा अपनी आन-बान और शान के लिए मैदान में डटकर लड़े। शुरूआत में हेमू का पलड़ा भारी रहा और मुगलों में भगदड़ मचने लगी। लेकिन, बैरम खां ने सुनियोजित तरीके से हेमू की सेना पर आगे, पीछे और मध्य में भारी हमला किया और चक्रव्युह की रचना करते हुए उनके तोपखाने पर भी कब्जा कर लिया।
मुगल सेना ने हेमू सेना के हाथियों पर तीरों से हमला करके उन्हें घायल करना शुरू कर दिया। मुगलों की तोपों की भयंकर गूंज से हाथी भड़क गए और वे अपने ही सैनिकों को कुचलने लगे। परिणामस्वरूप हेमू की सेना में भगदड़ मच गई और चारों तरफ से घिरने और और अपने मुख्य सहयोगी को वीरगति प्राप्त होने के बाद भी हेमू युद्ध करता रहा । उसी दौरान दुर्भाग्यवश एक तीर हेमू की आँख में आ धंसा। वह उस अवस्था में भी युद्ध करता रहा; बहुत ख़ून बह जाने से वह बेहोश होकर हाथी के हौदे में गिर गया। हेमचंद्र के गिरते ही सेना तितर-बितर होने लगी। मुग़लों ने ज़ोर का हमला कर शत्रु सेना को पराजित कर दिया।
बेहोश हेमचंद्र को मुग़लों ने बंदी बना लिया। उसे मुग़लों के मनोनीत बालक बादशाह अकबर के समक्ष उपस्थित किया गया। मुग़ल सरदार बैरमख़ाँ ने अकबर से कहा कि वह उसे अपने हाथ से मार दे। अकबर ने उस पर वार नहीं किया। बैरमख़ाँ ने उसका अंत कर दिया। हेमचंद्र की पराजय के साथ ही भारत में उसी दिन स्वतंत्र हिन्दू राज्य का सपना टूट गया और बालक अकबर के नेतृत्व में मुग़लों का शासन जम गया।