सिक्ख शक्ति का उदय
Sikh Shakti ka uday
सिक्ख धर्म की स्थापना सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में गुरूनानक देव द्वारा की गई थी। गुरू नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पश्चिमी पंजाब के एक गांव तलवंडी में हुआ था। एक बालक के रूप में उन्हें दुनियावी चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। तेरह वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने देश के लगभग सभी भागों में यात्रा की और मक्का तथा बगदाद भी गए और अपना संदेश सभी को दिया। उनकी मृत्यु पर उन्हें 9 अन्य गुरूओं ने अपनाया।
गुरू अंगद देव जी (1504-1552) तेरह वर्ष (1539-1552) के लिए गुरू रहे। उन्होंने गुरूमुखी की नई लिपि का सृजन किया और सिक्खों को एक लिखित भाषा प्रदान की। उनकी मृत्यु के बाद गुरू अमरदास जी (1479-1574) ने उनका उत्तराधिकार लिया। उन्होंने अत्यंत समर्पण दर्शाया और सिक्ख धर्म के अविभाज्य भाग्य के रूप में लंगर किया। गुरू रामदास जी ने चौथे गुरू का पद संभाला, उन्होंने श्लोक बनाए, जिन्हें आगे चलकर पवित्र लेखनों में शामिल किया गया। गुरू अर्जन देव जी सिक्ख धर्म के पांचवें गुरू बने। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध हरमंदिर साहिब का निर्माण कराया जो अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पवित्र ग्रंथ साहिब का संकलन किया, जो सिक्ख धर्म की एक पवित्र धार्मिक पुस्तक है। गुरू अर्जन देव ने 1606 में शरीर छोड़ा और उनके बाद श्री हर गोविंद आए, जिन्होंने स्थायी सेना बनाए रखी और सांकेतिक रूप से वे दो तलवारें धारण करते थे, जो आध्यात्मिकता और मानसिक शक्ति की प्रतीक है।
गुरू श्री हर राय सांतवें गुरू थे जिनका जन्म 1630 में हुआ और उन्होंने अपना अधिकांश जीवन ध्यान और गुरू नानक की बताई गई बातों के प्रचार में लगाया। उनकी मृत्यु 1661 में हुई और उनके बाद उनके द्वितीय पुत्र हर किशन ने गुरू का पद संभाला। गुरू श्री हर किशन जी को 1661 में ज्ञान प्राप्ति हुई। उन्होंने अपना जीवन दिल्ली के माहमारी से पीडित लोगों की सेवा और सुश्रुसा में लगाया। जिस स्थान पर उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली उसे दिल्ली में गुरूद्वारा बंगला साहिब कहा जाता है। श्री गुरू तेग बहादुर 1664 में गुरू बने। जब कश्मीर के मुगल राज्यपाल ने हिन्दुओं को बल पूर्वक धर्म परिवर्तन कराने के लिए दबाव डाला तब गुरू तेग बहादुर ने इसके प्रति संघर्ष करने का निर्णय लिया। गुरूद्वारा सीसगंज, दिल्ली उसी स्थान पर है जहां गुरू साहिब ने अंतिम सांसें ली और गुरू द्वारा रकाबगंज में उनका अंतिम संस्कार किया गया। दसवें गुरू, गुरू गोविंद सिंह का जन्म 1666 में हुआ और वे अपने पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के बाद गुरू बने। गुरू गोविंद सिंह ने अपनी मृत्यु के समय गुरू ग्रंथ साहिब को सिक्ख धर्म का उच्चतम प्रमुख कहा और इस प्रकार एक धार्मिक गुरू को मनोनीत करने की लंबी परम्परा का अंत हुआ।