महान गणितज्ञ आर्यभट्ट
Mahan Ganitagya Aryabhatta
भारत के इतिहास में जिसे ‘गुप्त काल’ या ‘सुवर्ण युग’ के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। प्राचीन काल में भारतीय गणित और ज्योतिष शास्त्र अत्यंत उन्नत था। गुप्त काल में ही महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म माना जाता है। भारत को विश्व में चमकाने वाले अनमोल नक्षत्र आर्यभट्ट ने वैज्ञानिक उन्नति में योगदान ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में चार चाँद लगाया। ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रंथ की रचना करके, उन्होंने भारत को विश्व में गौरवान्वित किया। आर्यभट्ट द्वारा की गई जीरो की खोज ने समस्त विश्व को नई दिशा दी।
आर्यभट्टमाना जाता है कि आर्यभट्ट बिहार राज्य की राजधानी पटना जो उस समय पाटलीपुत्र के नाम से मशहूर थी, के निकट कुसुमपुर के रहने वाले थे। माता-पिता का नाम तथा वंश परिचय के बारे में प्रमाणित जानकारी नहीं मिलती। अनुमानो के आधार पर उनकी जन्म तिथि 13 अप्रैल 476 और मृत्यु 550 में मानी जाती है। इसी के आधार पर प्रसिद्ध अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को ने आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती मनाई थी।
उस समय मगध विश्वविद्यालय विद्या का केन्द्र था। यहाँ पर खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिये एक अलग विभाग था और बौद्ध धर्म विख्यात था। उस दौरान जैन धर्म भी अपने चरम पर था। लेकिन आर्यभट्ट के श्लोकों से लगता है कि वे इन धर्मो का अनुसरण नहीं करते थे । प्राचीन कृतियों के रचनाकारों की तरह वे अपने श्लोकों के प्रारंभ में इष्ट देव की स्तुति करते और माना जाता है कि ब्रह्मा के वरदान से ही उन्होंने सम्पूर्ण ज्ञान आदि प्राप्त किया था। हालांकि भारत में खगोल शास्त्र का जन्म आर्यभट्ट से पहले सदियों पूर्व हो चुका था। यहाँ पर पंचांग के नियम नक्षत्र विभाजन आदि ईसा के जन्म से 13-14 शताब्दी पूर्व ही बनाये जा चुके थे। वेदों में भी खगोल विद्या का विवरण मिलता है। किन्तु आर्यभट्ट के समय खगोल शास्त्र की स्थिति खास अच्छी नहीं थी। उस समय प्रचलित पितामह सिद्धान्त, सौर्य सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्धान्त रोमक सिद्धान्त और पॉली सिद्धान्त पुराने हो चुके थे। इनसे गणित के सिद्धान्त हल नहीं हो रहे थे। ग्रहण की स्थिति की सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी, जिससे लोगों का विश्वास भारतीय ज्योतिष से उठने लगा था। आर्यभट्ट ने, उसमें मौजूद त्रुटियों को दूर करके उसे नवीन तथा प्रभावी रूप प्रदान किया। गुप्त काल के महान गणितज्ञ और खगोल शास्त्री आर्य भट्ट ने तीन ग्रन्थ लिखे थे। दश गितिका, आर्यभट्टियम तथा तन्त्र। आर्यभट्ट का मानना था कि, रचना महान होती है रचनाकार नहीं।
अद्भुत प्रतिभा के धनी आर्यभट्ट ने अनेक कठिन प्रश्नों के उत्तर को एक श्लोक में समाहित कर दिया है, गणित के पाँच नियम एक ही श्लोक में प्रस्तुत करने वाले आर्यभट्ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होंने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होंने सूर्यग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला। आर्यभट्ट को यह भी पता था कि चन्द्रमा और दूसरे ग्रह स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं, बल्कि सूर्य की किरणें उसमें प्रतिबिंबित होती हैं।
23 वर्ष की आयु में आर्यभट्ट ने ‘आर्यभट्टीय ग्रंथ’ लिखा था, जिससे प्रभावित होकर राजा बुद्ध गुप्त ने आर्यभट्ट को नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया। उनके सम्मान में भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था। 16वीं सदी तक के सभी गुरुकुल में आर्यभट्ट के श्लोक पढाये जाते थे। आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले ‘पाई’ (pi) की वैल्यू और ‘साइन’ (SINE) के बारे में बताया। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्धति का आविष्कार किया। बीज गणित में भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण संशोधन किए और गणित ज्योतिष का ‘आर्य सिद्धांत’ प्रचलित किया।
भारत के पहले गणितज्ञ और खगोल शास्त्री आर्यभट्ट को सम्मान देते हुए 2012 को गणित वर्ष मनाया गया था। शिकागो से जारी वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में आर्यभट्ट का नाम भी पूरे सम्मान से स्थापित किया गया है। आर्यभट्ट एक महान व्यक्ति थे, जिन्होंने गणित विषय का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण किया। दुनिया को महानतम खोज देने वाले भारत के इस महान गणितज्ञ को हम हम शत शत नमन करते हैं।