महात्मा गांधी का सत्याग्रह
Mahatma Gandhi ka Satyagrah
भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए कई आन्दोलन हुए। जिसमें सत्याग्रह आन्दोलन का अपना एक विशेष महत्व है। “सत्याग्रह’ का मूल अर्थ है ‘सत्य’ के प्रति ‘आग्रह’, ये दोनो ही शब्द संस्कृत भाषा के शब्द हैं।
सत्याग्रह का मूल लक्षण है, अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना। गांधी जी ने दक्षिण अफ़्रीका के ट्रांसवाल में औपनिवेशिक सरकार द्वारा एशियाई लोगों के साथ भेदभाव के क़ानून को पारित किये जाने के ख़िलाफ़ 1906 में पहली बार सत्याग्रह का प्रयोग किया था। भारत में गाँधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन के अंर्तगत अनेक कार्यक्रम चलाए गये थे। जिनमें प्रमुख है, चंपारण सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह। ये सभी आन्दोलन भारत की आजादी के प्रति महात्मा गाँधी के योगदान को परिलक्षित करते हैं। गाँधी जी ने कहा था कि, ये एक ऐसा आंदोलन है जो पूरी तरह सच्चाई पर कायम है और हिंसा का इसमें कोई स्थान नही है।
चंपारण सत्याग्रह
बिहार में चंपारण जिले को ये सौभाग्य प्राप्त है कि दक्षिण अफ्रिका से वापस आकर महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह आन्दोलन का प्रारम्भ यहीं से किया। चंपारण सत्याग्रह में गाँधी जी को सफलता भी प्राप्त हुई। चंपारण में अंग्रेजों ने नील बनाने के अनेकों कारखाने खोल रखे थे। ऐसे अंग्रेजों को निहले कहा जाता था। इन अंग्रेजों ने चंपारण की अधिकांश ज़मीनों को हथियाकर उस पर अपनी कोठियां बनवा ली थी। ये अंग्रेज यहाँ के किसानो को नील की खेती के लिए मजबूर करते थे। अंग्रेजों का कहना था कि एक बीघे ज़मीन पे तीन कठ्ठे नील की खेती जरूर करें। इस प्रकार पैदा हुई नील को ये निहले कौड़ियों के दाम खरीदते थे। इस प्रथा को तीन कठिया प्रथा कहा जाता था। इस प्रथा के कारण चंपारण के किसानों का भंयकर शोषण हो रहा था। फलतः किसानो में अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक असंतोष फैल चुका था। ये अंग्रेज यहाँ की जनता का अन्य प्रकार से भी शोषण किया करते थे, जिससे व्यथित होकर चंपारण के एक निवासी राजकुमार शुक्ल जो स्वंय एक किसान थे, इस अत्याचार का वर्णन करने के लिए गाँधी जी के पास गये। राजकुमार शुक्ल के सतत प्रयत्नो से ही राष्ट्रीय कांग्रेस के 1916 के अधिवेशन में एक प्रस्ताव प्रस्ताव पारित कर चंपारण के किसानो के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई। राजकुमार शुक्ल के साथ गाँधी जी 10 अप्रैल 1917 को पटना पहुँचे और वहाँ से उसी रात्रि मुजफ्फर नगर के लिए रवाना हो गये। पटना प्रवास के दौरान गाँधी जी वहाँ के प्रसिद्ध वकील बाबु राजेन्द्र प्रसाद से मिलना चाहते थे परन्तु राजेन्द्र बाबु उस समय वहा मौजूद नही थे। गाँधी जी अपने मित्र मौलाना मजरुल्लहक जो प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे, उनसे मिलकर नील की खेती से सम्बंधित समस्या की जानकारी ली और इससे निजात हेतु विचार विमर्श किया ।
15 अप्रेल को गाँधी जी मोतिहारी पहुँचे, वहाँ से 16 अप्रैल की सुबह जब गाँधी जी चंपारण के लिये प्रस्थान कर रहे थे, तभी मोतीहारी के एस डी ओ के सामने उपस्थित होने का सरकारी आदेश उन्हे प्राप्त हुआ। उस आदेश में ये भी लिखा हुआ था कि वे इस क्षेत्र को छोङकर तुरंत वापस चले जायें। गाँधी जी ने इस आज्ञा का उलंघन कर अपनी यात्रा को जारी रखा। आदेश की अवहेलना के कारण उनपर मुकदमा चलाया गया। चंपारण पहुँच कर गाँधी जी ने वहाँ के जिलाअधिकारी को लिखकर सुचित किया कि, “वे तब तक चंपारण नही छोङेगें, जबतक नील की खेती से जुङी समस्याओं की जाँच वो पूरी नही कर लेते।“ जब गाँधी जी सबडिविजनल की अदालत में उपस्थित हुए तो वहाँ हजारों की संख्या में लोग पहले से ही गाँधी जी के दर्शन को उपस्थित थे। मजिस्ट्रेट मुकदमें की कार्यवाही स्थगित करना चाहता था, किन्तु गाँधी जी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और कहा कि सरकारी उलंघन का अपराध वे स्वीकार करते हैं। गाँधी जी ने वहाँ एक संक्षिप्त बयान दिया जिसमें उन्होने, चंपारण में आने के अपने उद्देश्य को स्पष्ट किया। उन्होने कहा कि “वे अपनी अंर्तआत्मा की आवाज पर चंपारण के किसानों की सहायता हेतु आये हैं और उन्हे मजबूर होकर सरकारी आदेश का उलंघन करना पङा। इसके लिए उन्हे जो भी दंड दिया जायेगा उसे वे भुगतने के लिये तैयार हैं।“ गाँधी जी का बयान बहुत महत्वपूर्ण था। तद्पश्चात बिहार के लैफ्टिनेट गर्वनर ने मजिस्ट्रेट को मुकदमा वापस लेने को कहा। इस प्रकार गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का ज्वलंत उदाहरण पेश किया। गाँधी जी की बातों का ऐसा असर हुआ कि, वहाँ की सरकार की तरफ से उन्हे पूरे सहयोग का आश्वासन प्राप्त हुआ। चंपारण के किसानो की समस्या को सुलझाने में गाँधी जी को बाबू राजेन्द्र प्रसाद, आर्चाय जे पी कृपलानी, बाबु बृजकिशोर प्रसाद तथा मौलाना मजरुल्लहक जैसे विशिष्ट लोगों का सहयोग भी प्राप्त हुआ।
गाँधी जी और उनके सहयोगियों तथा वहाँ के किसानों की सक्रियता के कारण तत्कालीन बिहार सरकार ने उच्च स्तरिय समीति का गठन किया जिसके मनोनीत सदस्य गाँधी जी भी थे। इस कमेटी की रिपोर्ट को सभी पक्षों द्वारा स्वीकार किया गया और तीन कठ्ठा प्रथा समाप्त कर दी गई। इसके अलावा किसानों के हित में अनेक सुविधायें दी गईं। इस प्रकार निहलों के विरुद्ध ये आन्दोलन सफलता पूवर्क समाप्त हुआ।
इससे चंपारण के किसानों में आत्मविश्वास जगा और अन्याय के प्रति लङने के लिये उनमें एक नई शक्ति का संचार हुआ। चंपारण सत्याग्रह भारत का प्रथम अहिंसात्मक सफल आन्दोलन था। महात्मा गाँधी के नेतृत्व प्रति जन-साधारण की आस्था का श्री गंणेश चंपारण सत्याग्रह से ही हुआ था। इस प्रकार गाँधी जी द्वारा भारत में पहले सत्याग्रह आन्दोलन का शंखनाद चंपारण से शुरु हुआ।
खेङा सत्याग्रह
गुजरात प्रदेश के खेङा जिले में सन् 1917 में बहुत अधिक वर्षा होने के कारण फसल बरबाद हो गई थी। जिसकी वजह से भयंकर आकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। पशु हो या मनुष्य सभी के लिये भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। ऐसी विषम परिस्थिति में खेङा के किसानो ने सरकार से अनुरोध किया कि उनसे इस वर्ष मालगुजारी न वसूल की जाये। श्री अमृत लाल ठक्कर, श्री मोहन लाल पाण्डाया और शंकर लाल पारिख आदि नेताओं ने कमिश्नर को एक प्रतिवेदन देकर उनका ध्यान किसानो की बदहाली की ओर आकृष्ट किया। गुजरात सभा की अध्यक्ष की हैसियत से गाँधी जी ने भी सम्बन्धित अधिकारियों को पत्र लिखकर एवं तार भेजकर प्रार्थना की, कि मालगुजारी की वसूली को स्थगित कर दिया जाये किन्तु अंग्रेज नौकरशाही कुछ भी सुनने को तैयार नही थे। तब गाँधी जी ने खेङा जिले के किसानो को सत्याग्रह की सलाह दी। इस सत्याग्रह में वल्लभ भाई पटेल, उनके बङे भाई विठ्ठल भाई पटेल, शंकर लाल बैंकर, श्रीमति अनुसुइया बहन, इन्दुलाल याज्ञिक और महादेव देसाई आदि नेताओं ने गाँधी जी की सलाह को सक्रिय सहयोग दिया। सत्याग्रह के प्रारंभ में सभी सत्याग्रहियों से गाँधी जी ने ये शपथ लेने को कहा कि,
“क्योंकि हमारे गॉवों में फसल एक चौथाई से भी कम हुई है इसलिये हम लोगों ने सरकार से निवेदन किया था कि मालगुजारी की वसूली अगले साल तक के लिये स्थगित कर दिया जाये किन्तु सरकार ने हमारा निवेदन स्वीकार नहीं किया। अतः हम लोग प्रतिज्ञा करते हैं कि, इस साल सरकार को पूरी या बकाया मालगुजारी नही देंगे। इसके लिये सरकार जो भी कदम उठायेगी वो दंड स्वीकार करने के लिये हम खुशी से तैयार हैं, भले ही हमारी ज़मीन जब्त कर ली जाये फिर भी हम सरकार को मालगुजारी देकर अपने आत्मसम्मान को चोट नहीं पहुँचायेंगे। हम लोगों में से मालगुजारी देने में सक्षम लोग भी मालगुजारी इसलिये नही देंगे क्योंकि कहीं उनके दबाव में गरीब किसान मालगुजारी देने के चक्कर में अपना सर्वस्य न बेच दें। ऐसे गरीब किसानो को ध्यान में रखते हुए धनी किसानो का कर्तव्य है कि वो उनका साथ देते हुए सरकार को मालगुजारी न दें।“
खेङा सत्याग्रह में किसानो के आन्दोलन का ये तरीका बिलकुल नया था। गाँधी जी गॉव-गॉव घूमकर किसानो को हर हाल में शान्ती बनाये रखने की अपील कर रहे थे । उन्होने किसानो में सरकारी अफसरों से न डरने का साहस जगाया। गाँधी जी के व्यक्तित्व का ही असर था कि खेङा के किसानो ने पूरा आन्दोलन शान्तिपूर्ण तथा निर्भिकता से आगे बढाया। सरकारी दमन चक्र चलता रहा कुछ सत्याग्रही गिरफ्तार भी किये गये। मवेशियों तथा ज़मीनो को भी सरकारी दमन का शिकार होना पङा। इन सब कठिनाईयों के बावजूद भी किसान दृणता से अपने सत्याग्रह आन्दोलन पर डटे रहे। परिणाम स्वरूप मजबूर होकर सरकार को किसानो से समझौता करना पङा। इस आन्दोलन से गुजरात के किसानो को अपनी शक्ती का एहसास हुआ और देश में एकता की शक्ति का नारा बुलंद हुआ।
बारदोली सत्याग्रह
सन् 1928 में जब साइमन कमिशन भारत में आया, तब उसका राष्ट्रव्यापी बहिष्कार किया गया था। इस बहिष्कार के कारण भारत के लोगों में आजादी के प्रति अदम्य उत्साह था। जब कमिशन भारत में ही था, तब बारदोली का सत्याग्रह भी प्रारंभ हो गया था। बारदोली गुजरात जिले में स्थित है। बारदोली में सत्याग्रह करने का प्रमुख कारण ये था कि, वहाँ के किसान जो वार्षिक लगान दे रहे थे, उसमें अचानक 30% की वृद्धी कर दी गई थी और बढा हुआ लगान 30 जून 1927 से लागु होना था। इस बढे हुए लगान के प्रति किसानों में आक्रोश होना स्वाभाविक था। मुम्बई राज्य की विधानसभा ने भी इस वृद्धी लगान का विरोध किया था। किसानों का एक मंडल उच्च अधिकारियों से मिलने गया परंतु उसका कोई असर नही हुआ। अनेक जन सभाओं द्वारा भी इस लगान का विरोध किया गया किन्तु मुम्बई सरकार टस से मस न हुई। तब विवश होकर इस लगान के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया गया। किसानों की एक विशाल सभा बारदोली में आयोजित की गई, जिसमें सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि बढा हुआ लगान किसी भी कीमत पर नही दिया जायेगा। जो सरकारी कर्मचारी लगान लेने आयेंगे उनके साथ असहयोग किया जायेगा क्योंकि उस दौरान सरकारी कर्मचारियों के लिए खाने एवं आने-जाने की व्यवस्था किसानों द्वारा की जाती थी। इस आन्दोलन की जिम्मेदारी श्री वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई। जिसे उन्होने गाँधी जी की सलाह पर स्वीकार किया। बारदोली में जब सरकारी कर्मचारियों को लगान नही मिला तो वे किसानो के जानवरों को उठाकर ले जाने लगे। किसानो की चल अचल सम्पत्ति भी कुर्क की जाने लगी। इस अत्याचार के विरोध में विठ्ठल भाई पटेल जो की वल्लभ भाई पटेल के बङे भाई थे, उन्होने सरकार को चेतावनी दी कि, यदि ये अत्याचार बंद नही हुआ तो वे केन्द्रिय असेम्बली के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे देंगे। बारदोली सत्याग्रह के सर्मथन में गाँधी जी की अपील पर 12 जून को पूरे देश में बारदोली दिवस मनाया गया। जगह-जगह सभाएं हुईं और बारदोली की घटना का जिक्र पूरे देश में फैल गया। समाचार पत्रों के मजदूर नेताओं द्वारा भी सरकार से अनुरोध किया गया कि किसानो पर बढे लगान के बोझ को कम किया जाये। सभी प्रदेशों के किसान संगठन ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि बढा हुआ लगान वापस नही हुआ तो वो भी अपने प्रदेश में लगान बंदी आन्दोलन चलायेंगे। गाँधी जी के मार्गदर्शन से वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में इस आन्दोलन का असर सरकार पर हुआ और वायसराय की सलाह पर मुम्बई सरकार ने लगान के आदेश को रद्द करने की घोषणा करते हुए, सभी किसानो की भूमि तथा जानवरों को लौटाने का सरकारी फरमान जारी किया। गिरफ्तार किये गये किसानो को रिहा कर दिया गया। इस आन्दोलन की सफलता के उपलक्ष्य में 11 और 12 अगस्त को विजय दिवस मनाया गया। जिसमें वल्लभ भाई पटेल की सूझ-बूझ की भी प्रशंसा की गई। इसी आन्दोलन की सफलता पर एक विशाल सभा में गाँधी जी ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की पदवी से सम्मानित किया, जिसके बाद वल्लभ भाई पटेल, सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
गाँधी जी ने कहा था कि,
“Satyagraha does not depend on outside help, it derives all its strength from within.
सत्याग्रह बहरी मदद पर निर्भर नहीं करता , ये अपनी सम्पूर्ण शक्ति भीतर से प्राप्त करता है।”
गाँधी जी द्वारा शुरु किये गये सत्याग्रह आन्दोलन ने भारतीयों को अंग्रेज़ी शासन का अन्त करने के लिए कृत संकल्प किया। भारत की आजादी में उपरोक्त सत्याग्रह आन्दोलनो का विशेष योगदान रहा। त्याग और बलिदान की ज्योति को जलाते हुए सत्याग्रह से देश के अन्य राज्यों में भी सरकार की तानाशाही के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन की आवाज बुलंद हुई। मित्रों, अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के त्याग और समर्पण को २ अक्टूबर को आने वाले उनके जन्मदिवस पर याद करने का ये एक प्रयास है।