Hindi Essay on “Aspatal”, “अस्पताल ” Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes Exams.

अस्पताल

Aspatal

 

चिकित्सालय या अस्पताल (hospital) स्वास्थ्य की देखभाल करने की संस्था है। इसमें विशिष्टताप्राप्त चिकित्सकों एवं अन्य स्टाफ के द्वारा तथा विभिन्न प्रकार के उपकरणों की सहायता से रोगियों का निदान एवं चिकित्सा की जाती है।

अस्पताल (Hospital) या चिकित्सालय तथा औषधालय मानव सभ्यता के आदिकाल से ही बनते चले आए हैं। वेद और पुराणों के अनुसार स्वयं भगवान ने प्रथम चिकित्सक के रूप में अवतार लिया था। 5,000 वर्ष या इससे भी प्राचीन इतिहास में चिकित्सालयों के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें चिकित्सक तथा शल्यकोविद (सर्जन) काम करते थे। ये चिकित्सक तथा सर्जन रोगियों को रोगमुक्त करने और उनके आर्तिनाशन तथा मानवता की ज्ञानवृद्धि के भावों से प्रेरित होकर स्वयंसेवक की भांति अपने कर्म में प्रवृत्त रहते थे। ज्यों-ज्यों सभ्यता तथा जनसंख्या बढ़ती गई त्यों त्यों सुसज्जित चिकित्सालयों तथा सुसंगठित चिकित्सा विभाग की आवश्यकता भी प्रतीत होने लगी। अतएव ऐसे चिकित्सालय सरकार तथा सेवाभाव से प्रेरित जनसमुदाय की ओर से खोले जाने का प्रमाण इतिहास में मिलता है। हमारे देश में दूर- दूर के गाँवों में भी कोई न कोई ऐसा व्यक्ति होता था, चाहे वह अशिक्षित ही हो, जो रोगियों को दवा देता और उनकी चिकित्सा, करता था। इसके पश्चात् आधुनिक समय में तहसील तथा जिलों के अस्पताल बने जहाँ अंतरंग (इनडोर) और बहिरंग (आउटडोर) विभागों का प्रबंध किया गया। आजकल बड़े बड़े नगरों मेंअस्पताल बनाए गए हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न चिकित्सा विभागों के लिए विशेषज्ञ नियुक्त किए गए हैं। प्रत्येक आयुर्विज्ञान (मेडिकल) शिक्षण संस्था के साथ बड़े बड़े अस्पताल संबद्ध हैं और प्रत्येक विभाग एक विशेषज्ञ के अधीन हैं, जो कालेज में उस विषय का शिक्षक भी होता है। आजकल यह प्रयत्न किया जा रहा है कि गाँवों में भी प्रत्येक पाँच मील के क्षेत्र में चिकित्सा का एक केंद्र अवश्य हो।

आधुनिक अस्पताल की आवश्यकताएँ अत्यंत विशिष्ट हो गई हैं और उनकी योजना बनाना भी एक विशिष्ट कौशल या विद्या है। प्रत्येक अस्पताल का एक बहिरंग विभाग और एक अंतरंग विभाग होता है, जिनका निर्माण वहाँ की जनता की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।

आधुनिक अस्पतालों का निर्माण इंजीनियरिंग की एक विशेष कला बन गई है। अस्पतालों के निर्माण के लिए राज्य के मेडिकल विभाग ने आदर्श मानचित्र (प्लान) बना दिए हैं, जिनमें अस्पताल की विशेष आवश्यकताओं और सुविधाओं का ध्यान रखा गया है। सब प्रकार के छोटे-बड़े अस्पतालों के लिए उपयुक्त नकशे तैयार कर दिए गए हैं जिनके अनुसार अपेक्षित विस्तार के अस्पताल बनाए जा सकते हैं।

अस्पताल बनाने के पूर्व यह भली-भाँति समझ लेना उचित है कि अस्पताल खर्च करनेवाली संस्था है, धनोपार्जन करनेवाली नहीं। आधुनिक अस्पताल बनाने के लिए आरंभ में ही एक बड़ी धनराशि की आवश्यकता पड़ती हैं; उसे नियमित रूप से चलाने का खर्च उससे भी बड़ा प्रश्न है। बिना इसका प्रबंध किए अस्पताल बनाना भूल है। धन की कमी के कारण आगे चलकर बहुत कठिनाई होती है और अस्पताल का निम्नलिखित उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता:

नत्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नापुनर्भवम्।

कामये दु:खतप्तानाम् प्राणिनामार्तिनाशनम्।।

हमारा देश अति विस्तृत तथा उसकी जनसंख्या अत्यधिक है। उसी प्रकार यहाँ चिकित्सा संबंधी प्रश्न भी उतने ही विस्तृत और जटिल हैं। फिर जनता की निर्धनता तथा शिक्षा की कमी इस प्रश्न को और भी जटिल कर देती है। इस कारण चिकित्साप्रबंध की आवश्यकताओं के अध्ययन के लिए सरकार की ओर से कई बार कमेटियाँ नियुक्त की गई हैं। भोर कमेटी ने जो सिफारिशें की हैं आनके अनुसर प्रत्येक 10 से 12 सहस्र जनसंख्या के लिए 75 रोगियों को रखने योग्य एक ऐसा अस्पताल होना चाहिए जिसमें छह डाक्टर और छह उपचारिकाएँ तथा अन्य कर्मचारी नियुक्त हों। यह प्राथमिक अंग कहलाएगा। ऐसे 20 प्राथमिक अंगों पर एक माध्यमिक अंग भी आवश्यक है। यहाँ के अस्पताल में 1,000 अंतरंग रोगियों को रखने का प्रबंध हो। यहाँ प्रत्येक चिकित्साशाखा के विशेषज्ञ नियुक्त हों तथा परिचारिकाएँ और अन्य कर्मचारी भी हों। एक्स-रे, राजयक्ष्मा, सर्जरी, चिकित्सा, व्याधिकी, प्रसूति, अस्थिचिकित्सा आदि सब विभाग पृथक-पृथक हों। माध्यमिक अंग से परे ओर उससे बड़ा, केंद्रीय या जिले का विभाग या अंग हो, जहाँ उन सब प्रकार की चिकित्साओं का प्रबंध हो, जिनका प्रबंध माध्यमिक अग के अस्पताल में न हो। यही पर सबसे बड़े संचालक का भी स्थान हो।

इस आयोजन का समस्त अनुमित व्यय भारत सरकार की संपूर्ण आय से भी अधिक है। इस कारण यह योजना अभी तक कार्यान्वित नहीं हो सकी है।

आजकल जनसंख्या और उसी के अनुसार रोगियों की संख्या में वृद्धि होने से विशेष प्रकार के अस्पतालों का निर्माण आवश्यक हो गया है। प्रथम आवश्यकता छुतहे रोगों के पृथक अस्पताल बनाने की होती है, जहाँ केवल छुतहे रोगी रखे जाते हैं। इसी प्रकार राजक्ष्मा के रोगियों के लिए पृथक अस्पताल आवश्यक है। मानसिक रोग, अस्थिरोग, बालरोग, स्त्रीरोग, प्रसूतिगृह, विकलांगता आदि के लिए बड़े नगरों में पृथक अस्पताल आवश्यक हैं। छोटे नगरों में एक ही अस्पताल में कम से कम भिन्न-भिन्न अपेक्षित विभाग बनाना आवश्यक है। इन अस्पतालों का निर्माण भी उनके आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से करना होता है और उसी प्रकार वहाँ के कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती हैं। इन सब प्रकार के अस्पतालों के मानचित्र तथा वहाँ की समस्त आवश्यकताओं की सूची सरकार ने तैयार कर दी है, जिनके अनुसार सब प्रकार के अस्पताल बनाए जा सकते हैं।

 

 

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