ख़्वाब इन आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
Khwab in aankho se ab koi chura kar le jaye
ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
क़ब्र के सूखे हुये फूल उठा कर ले जाये
मुंतज़िर[1] फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये
ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये
ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना[2] बुतों के आगे
रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये