सागर से मिलकर
Sagar se milkar
नदी खारी हो जाती है
तबीयत वैसे ही
भारी हो जाती है मेरी
सम्पन्नों से मिलकर
व्यक्ति से मिलने का
अनुभव नहीं होता
ऐसा नहीं लगता
धारा से धारा जुड़ी है
एक सुगंध
दूसरी सुगंध की ओर
मुड़ी है
तो कहना चाहिए
सम्पन्न वयक्ति
वयक्ति नहीं है
वह सच्ची कोई अभिव्यक्ति
नहीं है
कई बातों का जमाव है
सही किसी भी
अस्तित्व का आभाव है
मैं उससे मिलकर
अस्तित्वहीन हो जाता हूँ
दीनता मेरी
बनावट का कोई तत्व नहीं है
फिर भी धनाड्य से मिलकर
मैं दीन हो जाता हूँ
अरति जनसंसदि का
मैंने इतना ही
अर्थ लगाया है
अपने जीवन के
समूचे अनुभव को
इस तथ्य में समाया है
कि साधारण जन
ठीक जन है
उससे मिलो जुलो
उसे खोलो
उसके सामने खुलो
वह सूर्य है जल है
फूल है फल है
नदी है धारा है
सुगंध है
स्वर है ध्वनि है छंद है
साधारण का ही जीवन में
आनंद है!a