सुनाई पड़ते हैं
Sunai padta he
सुनाई पड़ते हैं कभी कभी
उनके स्वर
जो नहीं रहे
दादाजी और बाई
और गिरिजा और सरस
और नीता
और प्रायः
सुनता हूँ जो स्वर
वे शिकायात के होते हैं
की बेटा
या भैया
या मन्ना
ऐसी-कुछ उम्मीद
की थी तुमसे
चुपचाप सुनता हूँ
और ग़लतियाँ याद आती हैं
दादाजी को
अपने पास
नहीं रख पाया
उनके बुढ़ापे में
निश्चय ही कर लेता
तो ऐसा असंभव था क्या
रखना उन्हें दिल्ली में
पास नहीं था बाई के
उनके अंतिम घड़ी में
हो नहीं सकता था क्या
जेल भी चला गया था
उनसे पूछे बिना
गिरिजा!
और सरस
और नीता तो
बहुत कुछ कहते हैं
जब कभी
सुनाई पड़ जाती है
इनमें से किसी की आवाज़
बहुत दिनों के लिए
बेकाम हो जाता हूँ
एक और आवाज़
सुनाई पड़ती है
जीजाजी की
वे शिकायत नहीं करते
हंसी सुनता हूँ उनकी
मगर हंसी में
शिकायत का स्वर
नहीं होता ऐसा नहीं है
मैं विरोध करता हूँ इस रुख़ का
प्यार क्यों नहीं देते
चले जाकर अब दादाजी
या बाई गिरिजा या सरस
नीता और जीजाजी
जैसा दिया करते थे तब
जब मुझे उसकी
उतनी ज़रुरत नहीं थी.