Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Ek din ati shant man”,” एक दिन अति शान्त मन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

एक दिन अति शान्त मन

 Ek din ati shant man

 

एक दिन अति शान्त मन

मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास .

दीप की  कँपती हुई लौ जल सके निर्वात ,

तभी आऊँगी तुम्हारे पास!

और, विचलित न हो जब थिर हो सकूँ,

मौसमों से दोस्ती के बीज फिर से बो सकूँ ,

अभी थोड़ा भ्रम बचा ही रह गया  होगा .

उबर कर मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास!

अभी राहें कहाँ चल कर पास आने को,

रीति-नीति सभी निभाने को पड़ी हैं .

निर्णयों  में देर ही  होती चली जाती,

और भी कठिनाइयाँ आकर अड़ी हैं .

अभी कहाँ निवृत्ति मेरी ,

शेष हैं कुछ ऋण चुकाने को . 

एक दिन जब चुप न रह कर, 

बहूँ निर्झऱ सी बिना आयास

चली आऊँगी तुम्हारे पास!

मत बुलाना ,

फिर कहीं कोई विवशता टेर लेगी.

टेरना मत अभी,

द्विविधा लौट कर फिर घेर लेगी .

रस्ते से बुला ले कोई रुकावट ,

कहीं फिर जाऊँ वहीं चुपचाप.

एक दिन सबसे उबर लूँ सिर चढ़े जो दोष,

उसी दिन ऐसा लगेगा अब न कोई टोक .

बीत जाये यह विषम घड़ियाँ बड़ी हैं,

तपन औ’, विश्रान्ति शीतल हो कि जब अनयास .

चली आऊँगी तुम्हारे पास!

कुछ समझना  रह गया होगा ,

कहीं कच्चापन बचा  होगा .

पार हो जायें सभी व्यवधान ,

पूर्ण  अपने स्वयं का संधान .

एक दिन  आँसू जमे ,

जब पिघल-गल बह जायँ अपने आप ,

चली आऊँगी तुम्हारे पास!

देह के, मन के अभी  तो शेष हैं  घेरे .

यहाँ के व्यवहार के बाकी अभी फेरे.

कामना के साथ कितने जाल

घेरते बन व्याल .

सभी धो लूँ दोष, विभ्रमों से मुक्त ,

हो सहज निष्पाप.

नृत्य सी लालित्यमय

बन जाय हर पदचाप .

चली आऊँगी तुम्हारे पास!

एक दिन अति शान्त मन

मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास!

 

 

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