कुमार का हठ
Kumar ka hath
षड्मुख घूमि तीन लोकन में आइ चरन सिर नाये!
स्रम से थकित आइ बइठे, देखित गणेश मुस्काये!
‘गये न तुम ,काहे से अपनो वाहन देख डेराने?’
‘पूरन काज कियो बुधि बल ते गजमुख परम सयाने
गणपति पहिल बियाहे कन्या पहिल पूजि सनमाने!’
शंकर कहिन ,’सबै साधन में श्रद्धा -बुधि है भारी!’
गुस्सइले कुमार,’ बातन से मोहे पितु महतारी ,
गई सबहिन की मति मारी !’
‘समरथ औ सुभ-मति से पूरन उचित पात्र अधिकारी,
इनका धारन करै बिस्व हित होवे मंगल कारी!
तनबल ,मनबल और बुद्धिबल की हम लीन परीच्छा ,
जा सों होय सकारथ रिधि -सिधि हमरी इहै सदिच्छा!’
शिकायत षड्मुख की भारी!
‘पार्वती समुझावैं ,’ तुम अति वीर महाबलधारी ,
साधन और उपाव सहज करि देत काज सब भारी!
बल ते सरै न काज अगम, तब बुद्धि उपाय सुझावै ,
हर्र-फिटकरी बिना रंग पूरो-पूरो चढ़ि जावे!
पूत तुम समुझौ बात हमारी!’
‘बुद्धि वीर बे ,वे बाहु वीर तुम दोऊ मोर दुलारे ,
दुइ कन्यन सों दोनिउ भैया ब्याह करहु मोरे बारे!’
खिन्न कुमार उठे बोले ‘तुम जौन कहा हम कीन्हा ,
आज्ञा सिर धरि दौरि थक्यो तौहूँ जस नेक न दीन्हा!
करो तुम ,जो भावै महतारी!
स्रम पुरुषारथ भयो अकारथ हम बियाह ना करिबे ,
उचटि गयो मन अब हम जाइ कहूँ अनतै ही रहिबे!’
गौरा गनपति करैं निहोरे अइस कुमार रिसाने ,
बहुत करी विनती कर जोरे विधि निरास पछिताने ,
पसुपति करि परबोध थकाने केहू भाँति न मानै
दोनिहुँ कन्या एकहि बर सों ब्याहन की तब ठाने!
‘लिखी जो कउन सकै , टारी!’
भयो बियाह वेद विधि गिरिजा परिछन कीन्ह बधुन को ,
गौरा को परिवार निरखि अस अचरज देव वधुन को!
गनपति पाये रिद्धिृसिद्धि द्वौ पुत्र लाभ-सुभ जनमे ,
सुर-मुनि सबै सिहात कामना करत कृपा की मन में!
बिघनहर्ता गजमुख धारी!