Hindi Poem of Ramavtar Tyagi “Mein dilli hu , “मैं दिल्ली हूँ ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मैं दिल्ली हूँ – रामावतार त्यागी

Mein dilli hu -Ramavtar Tyagi

 

मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं।
अपने आँगन में सपनों की, हर ओर कितारें देखीं हैं॥

मैंने बलशाली राजाओं के, ताज उतरते देखे हैं।
मैंने जीवन की गलियों से तूफ़ान गुज़रते देखे हैं॥

देखा है; कितनी बार जनम के, हाथों मरघट हार गया।
देखा है; कितनी बार पसीना, मानव का बेकार गया॥

मैंने उठते-गिरते देखीं, सोने-चाँदी की मीनारें।
मैंने हँसते-रोते देखीं, महलों की ऊँची दीवारें॥

गर्मी का ताप सहा मैंने, झेला अनगिनत बरसातों को।
मैंने गाते-गाते काटा जाड़े की ठंडी रातों को॥

पतझर से मेरा चमन न जाने, कितनी बार गया लूटा।
पर मैं ऐसी पटरानी हूँ, मुझसे सिंगार नहीं रूठा॥

आँखें खोली; देखा मैंने, मेरे खंडहर जगमगा गए।
हर बार लुटेरे आ-आकर, मेरी क़िस्मत को जगा गए ॥

मुझको सौ बार उजाड़ा है, सौ बार बसाया है मुझको।
अक्सर भूचालों ने आकर, हर बार सजाया है मुझको॥

यह हुआ कि वर्षों तक मेरी, हर रात रही काली-काली।
यह हुआ कि मेरे आँगन में, बरसी जी भर कर उजियाली।।

वर्षों मेरे चौराहों पर, घूमा है ज़ालिम सन्नाटा।
मुझको सौभाग्य मिला मैंने, दुनिया भर को कंचन बाँटा।।

जब चाहा मैंने तूफ़ानों के, अभिमानों को कुचल दिया।
हँसकर मुरझाई कलियों को, मैंने उपवन में बदल दिया।।

मुझ पर कितने संकट आए, आए सब रोकर चले गए।
युद्धों के बरसाती बादल, मेरे पग धोकर चले गए।।

कब मेरी नींव रखी किसने, यह तो मुझको भी याद नहीं।
पूँछू किससे; नाना-नानी, मेरा कोई आबाद नहीं।।

इतिहास बताएगा कैसे, वह मेरा नन्हा भाई है।
उसको इन्सानों की भाषा तक, मैंने स्वयं सिखाई है।।

हाँ, ग्रन्थ महाभारत थोड़ा, बचपन का हाल बताता है।
मेरे बचपन का इन्द्रप्रस्थ ही, नाम बताया जाता है।।

कहते हैं मुझे पांडवों ने ही, पहली बार बसाया था।
और उन्होंने इन्द्रपुरी से सुन्दर मुझे सजाया था।।

मेरी सुन्दरता के आगे सब, दुनिया पानी भरती थी।
सुनते हैं देश विदेशो पर, तब भी मैं शासन करती थी।।

किन्तु महाभारत से जो, हर ओर तबाही आई थी।
वह शायद मेरे घर में भी, कोई वीरानी लाई थी।।

बस उससे आगे सदियों तक, मेरा इतिहास नहीं मिलता।
मैं कितनी बार बसी-उजड़ी, इसका कुछ पता नहीं चलता।।

ईसा से सात सदी पीछे, फिर बन्द कहानी शुरू हुई।
आठवीं सदी के आते ही, भरपूर जवानी शुरू हुई।।

सचमुच तो राजा अनंगपाल ने फिरसे मुझे बसाया था।
मेरी शोभा के आगे तब, नन्दन-वन भी शरमाया था।।

मेरे पाँवों को यमुना ने, आंखों से मल-मल धोया था।
बादल ने मेरे होंठों को आ-आकर स्वयं भिगोया था।।

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