Hindi Poem of Shail Chaturvedi “Ullu Banati ho?“ , “उल्लू बनाती हो?” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

उल्लू बनाती हो?

Ullu Banati ho?

एक दिन मामला यों बिगड़ा

 कि हमारी ही घरवाली से

 हो गया हमारा झगड़ा

 स्वभाव से मैं नर्म हूँ

 इसका अर्थ ये नहीं

 के बेशर्म हूँ

 पत्ते की तरह काँप जाता हूँ

 बोलते-बोलते हाँफ जाता हूँ

 इसलिये कम बोलता हूँ

 मजबूर हो जाऊँ तभी बोलता हूँ

 हमने कहा-“पत्नी हो

 तो पत्नी की तरह रहो

 कोई एहसान नहीं करतीं

 जो बनाकर खिलाती हो

 क्या ऐसे ही घर चलाती हो

 शादी को हो गये दस साल

 अक्ल नहीं आई

 सफ़ेद हो गए बाल

 पड़ौस में देखो अभी बच्ची है

 मगर तुम से अच्छी है

 घर कांच सा चमकता है

 और अपना देख लो

 देखकर खून छलकता है

 कब से कह रहा हूँ

 तकिया छोटा है

 बढ़ा दो

 दूसरा गिलाफ चढ़ा दो

 चढ़ाना तो दूर रहा

 निकाल-निकाल कर रूई

 आधा कर दिया

 और रूई की जगह

 कपड़ा भर दिया

 कितनी बार कहा

 चीज़े संभालकर रखो

 उस दिन नहीं मिला तो नहीं मिला

 कितना खोजा

 और रूमाल कि जगह

 पैंट से निकल आया मोज़ा

 वो तो किसी ने शक नहीं किया

 क्योकि हमने खट से

 नाक पर रख लिया

 काम करते-करते टेबल पर पटक दिया-

 “साहब आपका मोज़ा।”

 हमने कह दिया

 हमारा नहीं किसी और का होगा

 अक़्ल काम कर गई

 मगर जोड़ी तो बिगड़ गई

 कुछ तो इज़्ज़त रखो

 पचास बार कहा

 मेरी अटैची में

 अपने कपड़े मत रखो

 उस दिन

 कवि सम्मेलन का मिला तार

 जल्दी-जल्दी में

 चल दिया अटैची उठाकर

 खोली कानपुर जाकर

 देखा तो सिर चकरा गया

 पजामे की जगह

 पेटीकोट आ गया

 तब क्या खाक कविता पढ़ते

 या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर

 मंच पर मटकते

 एक माह से लगातार

 कद्दू बना रही हो

 वो भी रसेदार

 ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता

 खाना खाया नहीं जाता

 बोलो तो कहती हो-

 “बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।”

 कल पड़ौसी का राजू

 बाहर खड़ा मूली खा रहा था

 ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था

 कई बार कहा-

 ज़्यादा न बोलो

 संभालकर मुंह खोलो

 अंग्रेज़ी बोलती हो

 जब भी बाहर जाता हूँ

 बड़ी अदा से कहती हो-“टा….टा”

 और मुझे लगता है

 जैसे मार दिया चांटा

 मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है

 ऐनिमा लगवा दो

 तो डॉक्टर बोलीं-“डैनिमा लगा दो।”

 वो तो ग़नीमत है

 कि ड़ॉक्टर होशियार था

 नीम हकीम होता

 तो बेड़ा ही पार था

 वैसे ही घर में जगह नहीं

 एक पिल्ला उठा लाई

 पाव भर दूध बढा दिया

 कुत्ते का दिमाग चढ़ा दिया

 तरीफ़ करती हो पूंछ की

 उससे तुलना करती हो

 हमारी मूंछ की

 तंग आकर हमने कटवा दी

 मर्दो की रही सही

 निशानी भी मिटवा दी

 वो दिन याद करो

 जब काढ़ती थीं घूंघट

 दो बीते का

 अब फुग्गी बनाती हो फीते का

 पहले ढ़ाई गज़ में

 एक बनता था

 अब दो ब्लाउज़ो के लिये

 लगता है एक मीटर

 आधी पीठ खुली रहती है

 मैं देख नहीं सकता

 और दुनिया तकती है

 मायके जाती हो

 तो आने का नाम नहीं लेतीं

 लेने पहुँच जाओ

 तो माँ-बाप से किराए के दाम नहीं लेतीं

 कपड़े

 बाल-बच्चों के लिये

 सिलवा कर ले जाती हो

 तो भाई-भतीजों को दे आती हो

 दो साड़ियाँ क्या ले आती हो

 सारे मोहल्ले को दिखाती हो

 साड़ी होती है पचास की

 मगर सौ की बताती हो

 उल्लू बनाती हो

 हम समझ जाते हैं

 तो हमें आँख दिखाती हो

 हम जो भी जी में आया

 बक रहे थे

 और बच्चे

 खिड़कियो से उलझ रहे थी

 हमने सोचा-

 वे भी बर्तन धो रही हैं

 मुन्ना से पूछा, तो बोला-“सो रही हैं।”

 हमने पूछा, कब से?

 तो वो बोला-

 “आप चिल्ला रहे हैं जब से।

 

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