Hindi Poem of Shriprakash Shukal “  Rampher”,”रामफेर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

रामफेर

 Rampher

 

इस अकेले घर में

जहाँ चारों तरफ ऐश्वर्य का दबदबा था

सब तरह की सुरक्षा थी

रामफेर को नींद नहीं आ रही थी

रामफेर!

हाँ रामफेर ही एक दिन गाँव से चल कर अपने बच्चों से मिलने

काशी आये थे

सोचा था काशी करवट के पहले

काशी का ढाँचा तो देख लिया जाय

देख लिया जाय घाटों पर उठती मंगला आरती के बीच

महाश्मश।न की लपटों में कितनी आर्द्रता है

कितनी गहराई हैं बालू पर लेटी हुई गंगा की

और तो और

रामफेर का यह भी मन हुआ

कि कितने लोगों में कितनी बार फिसलता है चंद्रमा

भोले के जटाजूट से खुलकर!

लेकिन इन सब स्थितियों के बीच

यह एक अजीब मुश्किल थी

कि रामफेर के चारों तरफ एक शांति के बावजूद

रामफेर को नींद नहीं आ रही थी

बच्चे उनसे बार बार पूछ रहे थे

कहीं कोई मच्छर तो नहीं है

कहीं कोई भूख तो नही लगी है

कहीं किसी सुर्ती की तलब तो नहीं है

और हर बार रामफेर का जवाब नकारात्मक ही रहता

एक दिन जब बच्चों ने थोड़ा जोर से कहा

या कि कहना चाहा

कि कहीं कोई शोर भी तो नहीं है

तब रामफेर से रहा नहीं गया

अरे बेटा वही तो नहीं हो रहा है

यह कहते हुये रामफेर झटके से उठे

और गाँव की तरफ चल दिये

आज रामफेर बहुत प्रसन्न थे

प्रसन्न रामफेर अपने जीवन में लौट रहे थे

एक सन्नाटे को चीरते हुए ।

 

 

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