पयोद और धरणी
Payod aur dharni
पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
बलाका माला से उठ कर उड़े और फहरे।
पयोद और धरणी
Payod aur dharni
पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
बलाका माला से उठ कर उड़े और फहरे।