आत्मा-परमात्मा का संबंध बताया कन्फ्यूशियस ने
Aatma Parmatma ka Sambandh Bataya Kan Confucius ne
दार्शनिक कन्फ्यूशियस के एक शिष्य को ध्यान लगाने और मन पर संयम स्थापित करने में कठिनाई होती थी। तब उन्होंने समझाया कि अपने को पूरी तरह से आत्मा में डुबो दो, तभी तुममें संयम आएगा।
कन्फ्यूशियस अपने समय के महान दार्शनिक और धर्म मर्मज्ञ थे। उनके शिष्य उन्हें रात-दिन घेरे रहते थे। उनके एक शिष्य येनहुई को ध्यान लगाने तथा मन पर संयम रखने में बहुत कठिनाई हो रही थी।
वह कन्फ्यूशियस के पास जाकर बोला- मन पर संयम रखने के लिए क्या करना चाहिए? कन्फ्यूशियस ने कहा- मन व आत्मा में एकता स्थापित करो, जो सोचो, सुनो और देखो उसका आभास करो। येनहुई गुरु की बात बिल्कुल भी नहीं समझा।
वे फिर बोले- तुम कान से नहीं सुनते, अपने मन और आत्मा से सुनते हो। तुम्हें कोई कुछ कह रहा है, लेकिन तुम्हारा ध्यान कहीं और है तो तुम नहीं सुन सकोगे। अत: केवल कान से सुनने वाली बात गलत है। कान के साथ जब तक आत्मा नहीं होगी, मन नहीं होगा, तब तक सुनकर भी नहीं सुन सकते। यही स्थिति आंखों की भी है और मस्तिष्क की भी।
अपने को पूर्णत: आत्मा में डुबो दो, तभी संयम आएगा और ज्यों ही संयम आया, तुम धर्म का आभास कर सकोगे। तब येनहुई ने पूछा- पर गुरुदेव इसके लिए तो स्वयं का पूरा व्यक्तित्व ही खो देना पड़ेगा। फिर हमारी पहचान क्या रह जाएगी? तब कन्फ्यूशियस ने समझाया- तुम परमतत्व को पाने के लिए मन पर संयम प्राप्त करना चाहते हो और अपना व्यक्तित्व भी खोना नहीं चाहते। सागर बनने की इच्छा रखने वाली बूंद को सागर के अथाह जल में खोना ही पड़ेगा।
कथा का अभिप्राय यह है कि परमेश्वर से मिलने की इच्छा रखने वाले को यह सत्य स्वीकारना होगा कि वह उसी का एक अंश है। कुल मिलाकर गूढ़ार्थ यह है कि अहं का विसर्जन ही परमात्मा की उपलब्धि का द्वार है।