Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Apang ko dekhkar kam hua jute na hone ka dukh” , “अपंग को देखकर कम हुआ जूते न होने का दुख” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12. क्रोध का कलंक Krod

अपंग को देखकर कम हुआ जूते न होने का दुख

Apang ko dekhkar kam hua jute na hone ka dukh

 

 

एक मजदूर था अवतार। बिल्कुल अकेला, न पत्नी, न बच्चे। कभी आवश्यकता होती तो मजदूरी कर लेता। एक बार जेठ की भरी दोपहर में जब उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, वह मजदूरी ढूंढ़ने सड़कों पर निकल पड़ा। तभी एक तांगा आकर रुका और उसमें से एक व्यक्ति बाहर आया।

 

अवतार भागकर उधर गया और उस व्यक्ति से पूछा- साहब! मजदूर चाहिए? वे बोले- मुझे महावीर टेकरी तक जाना है, चलोगे? अवतार ने हामी भर दी। महाशय का बिस्तर और पेटी सिर पर रखकर वह उनके पीछे-पीछे चल दिया। गरीबी के कारण उसके पैरों में जूते नहीं थे। तपिश से बचने के लिए कभी-कभी वह किसी पेड़ की छाया में थोड़ी देर खड़ा हो जाता।

 

पैर जलने से वह मन ही मन झुंझला उठा और उन महाशय से बोला- ईश्वर भी कैसा अन्यायी है? हम गरीबों को जूते पहनने लायक पैसे भी नहीं दिए। दोनों थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि तभी उन्हें एक ऐसा आदमी दिखा, जिसके पैर नहीं थे और वह जमीन पर घिसटते हुए चल रहा था। यह देखकर उन महाशय ने कहा- तुम्हारे पास तो जूते नहीं हैं, पर इसके तो पैर ही नहीं हैं। तुमसे भी छोटे और दुखी लोग संसार में हैं। तुम्हें जूते चाहिए तो अधिक मेहनत करो। हिम्मत हारकर ईश्वर को दोष देने की जरूरत नहीं। ईश्वर ने नकद पैसे तो आज तक किसी को भी नहीं दिए, पर अवसर सभी को बराबर दिए हैं।

 

वस्तुत: अपनी शारीरिक या मानसिक कमियों पर खेद जताने से कुछ हासिल नहीं होगा। इसके स्थान पर स्वयं की कमियों को दूर कर अपनी योग्यता व परिश्रम को बढ़ाकर बेहतर जीवन पाने का प्रयास करना चाहिए।

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