Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Durbuddhi Vanar” , “दुर्बुद्धि वानर” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

दुर्बुद्धि वानर

Durbuddhi Vanar

 

 

एक वन के किसी भाग में एक वृक्ष था| उसकी एक लम्बी शाखा पर घोंसला बनाकर चटक दम्पत्ति निवास करती थी| उनका जीवन बड़ा सुखमय बीत रहा था| एक बार हेमन्त ऋतु की बात है कि एक दिन सहसा मन्द-मन्द वर्षा होने लगी| कहीं से ठण्ड में ठिठुरता हुआ एक बन्दर आकर उस वृक्ष की जड़ में बैठ गया| ठण्ड से उसके दांत किटकिटा रहे थे| उसे देखकर चिड़िया ने कहा, ‘भद्र! देखने में तुम हष्ट-पुष्ट हि लगते हो| फिर भी इतना कांप रहे हो| तुम अपना कोई घर ही क्यों नहीं बना लेते?’

 

वानर को यह सुनकर क्रोध हो आया| उसने कहा, ‘चल बेवकूफी की| तुझे क्या? इतनी छोटी होकर तुम मेरा उपहास कर रही हो| अपने को बड़ा चतुर समझ रही है| मैं तुझे आज मार ही डालूंगा, जिससे कि यह तेरा बहकना सदा के लिए ही बन्द हो जाए| तुझे मेरे लिए दुखी होने की क्या आवश्यकता है?’

 

इतना कहकर वानर वृक्ष पर चढ़ गया और उसने उस घोंसले को नष्ट कर दिया जिस पर चिड़िया बैठी उपदेश दे रही थी|

 

इतनी कथा सुनकर करकट ने कहा, ‘इसीलिए मैं कहता हूं कि हर किसी के उपदेश नहीं देना चाहिए| दुष्ट व्यक्ति अपने विनाश से उठा दुखी नहीं होता जितना कि वह दूसरों को दुखी देखकर प्रसन्न होता है| दुष्टों का यह स्वाभाविक गुण है| धर्म बुद्धि और पापबुद्धि को मैं भली-भांति जानता हूं| उनमें से पाप बुद्धि ने ही धुएं से गला घोंटकर अपने पिता को मार डाला|’

 

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