Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Jab Budh ne Vridha ka Jhootha aam swikar kiya” , “जब बुद्ध ने वृद्धा का जूठा आम स्वीकार किया” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

जब बुद्ध ने वृद्धा का जूठा आम स्वीकार किया

Jab Budh ne Vridha ka Jhootha aam swikar kiya

 

 

मगध की राजधानी में भगवान बुद्ध के प्रवचन सुनने भारी तादाद में लोग जुटते और उनके अमृत वचनों से लाभान्वित होते। थोड़े दिनों बाद बुद्ध ने अगले शहर जाने का विचार किया। अगले दिन के प्रवचन की समाप्ति पर बुद्ध ने वहां से जाने की घोषणा कर दी।

 

यह सुनकर नगरवासी दुखी हो गए और उनसे कुछ दिन और रुकने का आग्रह किया, किंतु बुद्ध ने उनसे क्षमा मांगते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। नगरवासियों की इच्छा थी कि बुद्ध को कुछ न कुछ भेंट दें। बुद्ध अगले दिन अपने आसन पर विराजित हुए और भेंट देने का क्रम आरंभ हुआ। जो भी भेंट आती, बुद्ध अपने शिष्यों से कहकर एक ओर रखवा देते। तभी एक गरीब वृद्धा खा चुके आधे आम को लेकर आई और बुद्ध के चरणों में वह जूठा आम रखकर बोली- भगवन्! मेरे पास यही मेरी समस्त पूंजी है। मैं धन्य होऊंगी, यदि आप इसे स्वीकार करेंगे।

 

बुद्ध ने बड़े प्रेम से उस आम को उठा लिया। नगरवासियों ने पूछा- भगवन्! इस आम में ऐसा क्या था कि उसे आपने स्वयं उठकर ग्रहण किया? जबकि हमारे बहुमूल्य उपहार एक ओर रखवा दिए। तब बुद्ध बोले- वृद्धा के पास जितनी भी पूंजी थी, वह उसने अपने पेट की चिंता किए बगैर मुझे प्यार और श्रद्धा से अर्पित कर दी, जबकि तुम लोगों ने अहंकार से अपने धन का कुछ ही हिस्सा भेंट किया। तुम्हारे और वृद्धा के दान देने में अहंकार और श्रद्धा का भेद है।

 

आशय यह है कि श्रद्धा सहित किया गया दान दाता व याचक दोनों की आत्मा को तृप्त करता है, जबकि दान में अभिमान शामिल होने पर वह मात्र आवश्यकता को ही संतुष्ट कर पाता है।

 

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