पंडित और चोर को मिला अपने कर्मो का फल
Pandit Aur Chor Ko Mila Apne Karmo ka Phal
एक पंडित व चोर प्रतिदिन शिव मंदिर जाते। एक दिन चोर को मंदिर के द्वार पर सोने की अशर्फियां मिलीं और पंडित के पैर में लोहे की कील चुभ गई। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और दोनों को उनके कर्मो का महत्व बताते हुए समझाया।
शिव मंदिर में नित्य एक पंडित और एक चोर आते थे। पंडित अत्यंत भक्तिभाव से शिवलिंग पर फल-फूल और दूध चढ़ाकर पूजा करता था। वहीं बैठकर शिवस्तोत्र का पाठ करता और घंटों श्रद्धा से शिव का ध्यान करता। दूसरी ओर उसी शिव मंदिर में एक चोर भी प्रतिदिन आता था। वह आते ही शिवलिंग पर डंडे मारना शुरू कर देता और अपने भाग्य को कोसता हुआ भगवान को अपशब्द कहता।
अपनी विपन्नता का सारा दोष वह भगवान शिव पर मढ़ता और उन्हें अन्यायी व पक्षपाती ठहराता। एक दिन पंडित और चोर साथ-साथ ही मंदिर में आए और अपनी प्रतिदिन की प्रक्रिया दोहराई। काम भी दोनों का साथ ही खत्म हुआ और दोनों का साथ ही बाहर आना हुआ। तभी चोर को द्वार के बाहर सोने की अशर्फियों से भरी थैली मिली और पंडित के पैर में लोहे की कील से गहरा घाव हो गया।
अशर्फियां मिलने से चोर को अत्यंत प्रसन्नता हुई लेकिन पैर में गहरा घाव होने के कारण पंडित बड़ा दुखी हुआ और रोने लगा। तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए और पंडित से बोले- पंडितजी! आज के दिन आपके भाग्य में फांसी लगनी लिखी थी किंतु मेरी पूजा करके अपने सत्कर्म से फांसी को आपने केवल एक गहरे घाव में बदल दिया। इस चोर को आज के दिन राजा बनकर राजसिंहासन पर बैठना था किंतु इसके कर्मो ने इसे केवल स्वर्णमुद्रा का ही अधिकारी बनाया। जाओ अपना कर्म करो।
वस्तुत: अपना भाग्य निर्माता मनुष्य स्वयं ही होता है। यदि वह अच्छे कर्म करेगा तो सुपरिणाम के रूप में बेहतर भाग्य पाएगा और दुष्कर्मो का फल दुर्भाग्य का पात्र बनाता है।