शस्त्र और शास्त्र के महारथी – परशुराम
Shastra aur Shastr ke maharathi – Parshuram
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जिनका सादर नमन करते हों, उन शस्त्रधारी और शास्त्रज्ञ भगवान परशुराम की महिमा का वर्णन शब्दों की सीमा में संभव नहीं। वे योग, वेद और नीति में निष्णात थे, तंत्रकर्म तथा ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी पारंगत थे, यानी जीवन और अध्यात्म की हर विधा के महारथी।
विष्णु के छठे अवतार परशुराम पशुपति का तप कर परशु धारी बने और उन्होंने शस्त्र का प्रयोग कुप्रवृत्तियों का दमन करने के लिए किया। कुछ लोग कहते हैं, परशुराम ने जाति विशेष का सदैव विरोध किया, लेकिन यह तार्किक सत्य नहीं। तथ्य तो यह है कि संहार और निर्माण, दोनों में कुशल परशुराम जाति नहीं, अपितु अवगुण विरोधी थे। गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में –
जो खल दंड करहुं नहिं तोरा, भ्रष्ट होय श्रुति मारग मोरा की परंपरा का ही उन्होंने भलीभांति पालन किया। परशुराम ने ऋषियों के सम्मान की पुनस्र्थापना के लिए शस्त्र उठाए। उनका उद्देश्य जाति विशेष का विनाश करना नहीं था। यदि ऐसा होता, तो वे केवल हैहय वंश को समूल नष्ट न करते। जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में श्रीराम की वास्तविकता जानने के बाद प्रभु का अभिनंदन किया, तो कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन करने में भी परशुराम ने संकोच नहीं किया। कर्ण को श्राप उन्होंने इसलिए नहीं दिया कि कुंतीपुत्र किसी विशिष्ट जाति से संबंध रखते हैं, वरन् असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था।
कौशल्या पुत्र राम और देवकीनंदन कृष्ण से अगाध स्नेह रखने वाले परशुराम ने गंगापुत्र देवव्रत (भीष्म पितामह) को न सिर्फ युद्धकला में प्रशिक्षित किया, बल्कि यह कहकर आशीष भी दी कि संसार में किसी गुरु को ऐसा शिष्य पुन: कभी प्राप्त न होगा! पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया को ही त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। इसी दिन, यानी वैशाख शुक्ल तृतीया को सरस्वती नदी के तट पर निवास करने वाले ऋषि जमदग्नि तथा माता रेणुका के घर प्रदोषकाल में जन्मे थे परशुराम। परशुराम के क्रोध की चर्चा बार-बार होती है, लेकिन आक्रोश के कारणों की खोज बहुत कम हुई है। परशुराम ने प्रतिकार स्वरूप हैहयवंश के कार्तवीर्य अर्जुन की वंश-बेल का 21 बार विनाश किया था, क्योंकि कामधेनु गाय का हरण करने के लिए अर्जुनपुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। भगवान दत्तात्रेय की कृपा से हजार भुजाएं प्राप्त करने वाला कार्तवीर्य अर्जुन दंभ से लबालब भरा था। उसके लिए विप्रवध जैसे खेल था, जिसका दंड परशुराम ने उसे दिया। ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि सहस्त्रबाहु ने परशुराम के कुल का 21 बार अपमान किया था।
परशुराम के लिए पिता की हत्या का समाचार प्रलयातीत था। उनके लिए ऋषि जमदग्नि केवल पिता ही नहीं, ईश्वर भी थे। इतिहास प्रमाण है कि परशुराम ने गंधर्वो के राजा चित्ररथ पर आकर्षित हुई मां रेणुका का पिता का आदेश मिलने पर वध कर दिया था। जमदग्नि ने पितृ आज्ञा का विरोध कर रहे पुत्रों रुक्मवान, सुखेण, वसु तथा विश्वानस को जड़ होने का श्राप दिया, लेकिन बाद में परशुराम के अनुरोध पर उन्होंने दयावश पत्नी और पुत्रों को पुनर्जीवित कर दिया। पशुपति भक्त परशुराम ने श्रीराम पर भी क्रोध इसलिए व्यक्त किया, क्योंकि अयोध्या नरेश ने शिव धनुष तोड़ दिया था। वाल्मीकि रामायण के बालकांड में संदर्भ है कि भगवान परशुराम ने वैष्णव धनुष पर शर-संधान करने के लिए श्रीराम को कहा। जब वे इसमें सफल हुए, तब परशुराम ने भी समझ लिया कि विष्णु ने श्रीरामस्वरूप धारण किया है।
परशुराम के क्रोध का सामना तो गणपति को भी करना पड़ा था। मंगलमूर्ति ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया था, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार किया, जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए। अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति प्रभुस्वरूप परशुराम के संबंध में भी यह बात मानी जाती है कि वे चिरजीवी हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित है,