जब गुलाम ने बादशाह को किया लाजवाब
Jab Gulam ne badsha ko kiya lajwab
जीवन दर्शन. तैमूरलंग गुलामों को बेचने का सौदा करता था। उसने गुलाम अहमदी से अपनी स्वयं की कीमत पूछी। अहमदी ने तर्कपूर्ण जवाब दिया- दो अशर्फी। अहमदी की स्पष्टवादिता से बादशाह बेहद प्रभावित हुआ।
एक बार बादशाह तैमूरलंग ने बड़ी संख्या में गुलाम पकड़े। उसका सिद्धांत था कि पकड़े हुए गुलामों को बेचने का सौदा वह स्वयं ही मोल-भाव करके करता था। उसने अपने विश्वस्त सेवकों को आदेश दिया कि सभी गुलामों को विक्रय स्थल पर एकत्रित कर दें। जब सेवकों ने यह कार्य कर दिया, तब वह बड़ी शान से वहां पहुंचा और बैठ गया।
उसने सभी गुलामों पर एक विजयी दृष्टि डाली और फिर एक गुलाम को अपने पास बुलाया। वह गुलाम और कोई नहीं, बल्कि तुर्किस्तान के दार्शनिक अहमदी थे। तैमूरलंग ने अहमदी से प्रश्न किया- बताओ, तुम्हारे पास खड़े इन दो गुलामों की कीमत कितनी होनी चाहिए? अहमदी ने कहा- ये समझदार और मेहनती दिखाई देते हैं। अत: इनकी कीमत चार-चार हजार अशर्फियांे से कम तो नहीं होनी चाहिए।
तैमूरलंग ने फिर पूछा- मेरी कीमत क्या हो सकती है? कुछ सोचकर अहमदी बोले- दो अशर्फी। विस्मित तैमूरलंग गुस्से से गरजा- मेरा इतना अपमान? इतने पैसों की तो मेरी चादर है। निर्भयता के साथ दार्शनिक अहमदी ने तैमूरलंग के तमतमाते चेहरे को देखकर कहा- यह कीमत तो मैंने तुम्हारी चादर देखकर ही बताई है। तुम्हारे जैसे अत्याचारी और अकर्मण्य बादशाह की कीमत तो एक छदाम भी नहीं हो सकती। अहमदी की निर्भीकता व स्पष्टवादिता ने तैमूरलंग का गुस्सा ठंडा कर दिया और उसने उन्हें मुक्त कर दिया।
दरअसल किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी योग्यता व कार्यक्षमता के आधार पर ही होता है। यदि व्यक्ति योग्य है और कर्मठ भी, तो वह लाख का है। इसके विपरीत अयोग्यता व अकर्मण्यता व्यक्ति को खाक का दर्जा देते हैं।