Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “” , “लाश की गवाही” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

लाश की गवाही

Lash Ki Gwahi

 

 

पूर्व काल में हर्षपुर नाम का एक विशाल नगर था| इस समृद्ध नगर का स्वामी राजा हर्षदत्त था, जिसके सुप्रबंध के कारण नगर की प्रजा बड़े सुख से रहती थी|

 

इसी नगर में समुद्रशूर नाम का एक व्यापारी रहता था, जो अपने जलपोतों के द्वारा दूर-दूर दूसरे देशों की यात्राएं किया करता था| इस कार्य में उसका चतुर एवं स्वामिभक्त सेवक देवसोम उसकी सहायता किया करता था|

 

एक दिन देवसोम ने अपने स्वामी व्यापारी समुद्रशूर से कहा – स्वामी! इस बार आप स्वर्णद्वीप में व्यापार के लिए चलिए| सुना है वर्षा न होने से वहां अकाल जैसी स्थिति पैसा हो गई है|

 

व्यापारी समुद्रशूर ने कहा – देवसोम! तुम्हारा यह विचार अति उत्तम है| यदि हम अनाज और भोजन की सामग्रियां वहां बेचने के लिए ले जाएं तो हमें बहुत लाभ हो सकता है| स्वर्णद्वीप के लोगों के पास धन की कमी नहीं है, लेकिन धन से भूख शांत नहीं होती| अगर धन के बदले हम उन्हें अनाज और दूसरी भोज्य सामग्री देंगे तो वे बड़ी प्रसन्नता से इस सौदे को स्वीकार कर लेंगे|

 

देवसोम से ऐसा विचार-विमर्श करके समुद्रशूर ने अपने जलपोतों में खाद्य सामग्री भरवाई और वह अनेक जलपोतों को लेकर स्वर्णद्वीप के लिए चल पड़ा|

 

इंसान सोचता कुछ और है और होता कुछ और है| यही विधि का विधान है| समुद्रशूर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ| जब वह अपनी आधी यात्रा समाप्त कर चुका तो समुद्र में भयंकर तूफान आ गया| ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगीं| उसके सामान से भरे पोत समुद्र की लहरों पर सूखे पत्ते की तरह उछलने लगे| अचानक एक तेज लहर ने उस पोत का, जिस पर समुद्रशूर सवार था, उसके अन्य पोतों से संबंध विच्छेद कर दिया| नौका समुद्र की लहरों पर ऊंची उछली और फिर उलट गई| समुद्रशूर के अन्य पोत लहरों के साथ दूर बहते चले गए|

 

समुद्रशूर कुशल तैराक था, जैसे ही उसकी नौका उलटी, वह पानी में तैरने लगा| उसने अपनी निगाहें चारों ओर दौड़ाईं तो बहुत दूर उसे कुछ नारियल के वृक्ष खड़े दिखाई दिए| यह देखकर वह समझ गया कि उस दिशा में अवश्य ही कोई द्वीप है| तब वह प्राणापण से उसी दिशा में तैरने लगा, लेकिन कब तक तैरता! किनारा अभी काफी दूर था और वह तैरते-तैरते थक चुका था| फिर भी जीवन की आशा में उसने तैरना जारी रखा|

 

अचानक तैरते हुए उसकी निगाह एक मृत शरीर पर पड़ी| वह किसी मनुष्य का मृत शरीर था, जो फूल जाने के कारण लहरों पर डोल रहा था| ‘डूबते को तिनके का सहारा|’ ईश्वर का नाम लेकर समुद्रशूर उस शव पर बैठ गया और हाथों को पतवार बनाकर शव को तट की ओर ले चला| तट पर पहुंचकर वह शव से उतरा और शव को मन-ही-मन धन्यवाद देते हुए तट पर बिछी रेत पर गिरकर लंबी-लंबी सांसें भरने लगा| फिर जब वह कुछ व्यवस्थित हुआ तो उठकर बैठ गया| उसने इधर-उधर दृष्टि घुमाई तो वह द्वीप उसे निर्जन दिखाई दिया| अब वह अपनी स्थिति पर विचार करने लगा| जलपोत नष्ट हो गए| साथ में यात्रा के लिए जो धन लाया था, वह समुद्र की भेंट चढ़ गया| अब वह कहां जाए? लेकिन कहा गया है – ‘जब तक सांस तब तक आस|’ समुद्रशूर ने धैर्य का दामन नहीं छोड़ा| वह उठकर खड़ा हो गया| कपड़े झटके तो एक खूबसूरत स्वर्णहार छिटककर समुद्र की रेत पर जा गिरा| समुद्रशूर ने उस हार को उठाया| वह व्यापारी था, अत: समझ गया कि हार बहुमूल्य है| उसकी कीमत लाखों रुपए है, किंतु वह हार उसके पास आया कहां से? पहले तो उसके पास यह हार नहीं था, तभी अचानक उसे याद आया कि वह जिस शव पर बैठकर किनारे तक पहुंचा था, यह हार उस शव से ही उसकी धोती में लिपटकर यहां तक पहुंचा है| उसने मन-ही-मन उस शव को एक बार फिर धन्यवाद दिया|

 

‘अब इस हार को निकटवर्ती किसी नगर में जाकर बेच दूंगा और उससे प्राप्त धन से फिर से कोई रोजगार करके अपने देश लौटने की कोशिश करूंगा|’ ऐसा विचार कर उसने हार अपनी जेब में रखा और इधर-उधर देखता उस दिशा में चल दिया, जिधर पगडंडी पर बने हुए कुछ मानव और पशुओं के पदचिन्ह दिखाई दे रहे थे| काफी दूर चलने के बाद उसे दूर एक मंदिर का कलश दिखाई दिया| समुद्रशूर के कदम अपने-आप उसी दिशा में उठ गए|

 

निकट पहुंचा तो उसने देखा, वह एक खंडहर हो चुका मंदिर था| रख-रखाव के अभाव में मंदिर का अधिकांश भाग खंडहर के रूप में तब्दील हो चुका था| उसका सिर्फ वही भाग सुरक्षित था, जिसमें देवी मां की मूर्ति स्थापित थी| समुद्रशूर ने अंदर जाकर देवी की मूर्ति को प्रणाम किया और बाहर निकलकर मंदिर के खुले प्रांगण में आकर बैठ गया| वह बेहद थका हुआ था, अत: शीघ्र ही नींद ने उसे आ दबोचा|

 

कितनी ही देर तक समुद्रशूर दीन-दुनिया से बेखबर उबड़-खाबड़ जमीन पर पड़ सोता रहा| जब वह जागा तो पूरब दिशा में भोर की लालिमा फूटने लगी थी| वह उठकर दैनिकचर्या के अनुसार नित्यकर्म करने का विचार कर ही रहा था कि कुछ सुरक्षा प्रहरी उसे अपनी ही दिशा में आते दिखाई दिए| यह देखकर समुद्रशूर सर्तक होकर बैठ गया| सुरक्षा प्रहरी उसके पास पहुंचे| उन्होंने संदिग्ध दृष्टि से समुद्रशूर की ओर देखा, फिर उससे पूछा – कौन हो तुम? इस ध्वस्त इमारत में किसलिए बैठे हो?

समुद्रशूर ने उन्हें सारी आपबीती बताई, लेकिन उन्हें उसकी एक भी बात पर विश्वास नहीं आया| उन्होंने उसकी तलाशी ली तो स्वर्णहार उसकी जेब में मिल गया| यह देख उन प्रहरियों का नायक बोला – यह स्वर्णहार तो वही जान पड़ता है, जो पिछले दिनों राजकुमारी चक्रसेना के यहां से चोरी हो गया था|

 

तब तो यह व्यक्ति निश्चय ही एक चोर है| दूसरे सुरक्षा प्रहरी ने कहा – इसे ले जाकर महाराज के सामने प्रस्तुत करना चाहिए| चोर को पकड़ने के एवज में महाराज से हमें पुरस्कार मिलेगा|

 

सुरक्षा प्रहरी समुद्रशूर को धकियाते, उसके साथ दुर्व्यहार करते हुए उसे लेकर राजा के पास पहुंचे| राजा ने जब समुद्रशूर का अपराध पूछा तो सुरक्षाकर्मियों के नायक ने बताया – महाराज! यह आदमी चोर है| पिछले दिनों राजकुमारी चक्रसेना का जो स्वर्णाहार चोरी हो गया था, वह इसने इस व्यक्ति की जेब से बरामद किया है|

 

राजा ने स्वर्णहार देखा और उसे तुरंत पहचान लिया, क्योंकि उसी ने वह स्वर्णहार अपनी बेटी के जन्मदिन पर उसे भेंट किया था|

 

तब उसने समुद्रशूर से कहा – ये सिद्ध हो चुका है कि तुम्हीं ने राजकुमारी चक्रसेना के कक्ष में घुसकर चोरी की थी| यह हार इस बात का प्रमाण है| कहो, अपनी सफाई में तुम्हें कुछ कहना है?

 

राजन! मैंने चोरी नहीं की| मैं आपसे बता चुका हूं कि मैं अपने नगर का एक संपन्न नागरिक हूं| चोरी जैसी घृणित भावना मेरे मन में कभी पैदा हो ही नहीं सकती| समुद्रशूर ने कहा|

 

फिर यह स्वर्णहार तुम्हारे पास कहां से आया?

 

मैंने बताया तो है महाराज! यह हार उस शव के पास था, जिसके ऊपर बैठकर मैं किनारे पर पहुंचा था| जब मैं उस शव से उतरा तो किसी प्रकार यह हार मेरी धोती में अटक गया| किनारे पर आकर जब मैंने अपने गीले वस्त्र झटके तो यह हार छिटककर रेत पर गिर पड़ा था| मैंने इसे ईश्वर की कृपा मानकर उठा लिया और तब से यह हार मेरे ही पास था|

 

यह सुनकर राजा ने कहा – हम तुम्हारे कथन से संतुष्ट नहीं हैं, अत: जब तक यह प्रमाणित नहीं हो जाता कि चोर तुम नहीं, कोई और है, तुम्हें कारावास में रखने का आदेश दिया जाता है|

 

राजा के आदेशानुसार समुद्रशूर को कारागार में डाल दिया गया| फिर जब राजा महल में पहुंचा तो उसने राजकुमारी चक्रसेना को वह हार देते हुए कहा – पुत्री चक्रसेना! गौर से इस हार का निरीक्षण करो और हमें बताओ कि क्या यह वही हार है, जिसे हमने तुम्हें तुम्हारे जन्म दिन पर उपहारस्वरूप भेंट किया था?

 

राजकुमारी चक्रसेना ने गौर से हार का निरीक्षण किया और बिना कोई हिचकिचाहट यह स्वीकार कर लिया कि हार उसी का है, फिर उसने अपने पिता से कहा – पिताश्री! जब वह चोर इस हार को चुराकर भाग रहा था, तब मैंने कुछ क्षण के लिए उसकी एक झलक देखी थी| यदि उस चोर को पकड़कर मेरे सम्मुख लाया जाए तो मैं उसकी कद-काठी और चेहरे-मोहरे से उसे पहचान लूंगी|

 

तब राजा ने कारावास से समुद्रशूर को निकलवाकर पहचान करने के लिए राजकुमारी के समक्ष प्रस्तुत किया| बहुत गौर से समुद्रशूर का निरीक्षण करने के पश्चात अंतत: राजकुमारी ने निर्णय दिया – नहीं पिताश्री! यह वह आदमी नहीं, जो मेरा हार लेकर भागा था| वह व्यक्ति इस आदमी से कहीं ज्यादा लंबा एवं शरीर से हल्का था| भागते समय प्रकाश की कुछ किरणें उसके चेहरे पर पड़ी थीं, तब मैंने देखा था कि उसका चेहरा घनी दाढ़ी-मूंछों से ढका हुआ था| उसके चेहरे पर दरिंदगी के लक्षण थे, जबकि इसके (समुद्रशूर) चेहरे पर तो अजीब-सी सौम्यता है|

 

अब तो राजा के सामने यह दुविधा पैदा हो गई कि वह क्या निर्णय ले! प्रत्यक्ष रूप में समुद्रशूर चोर था, क्योंकि उसी के पास से राजकुमारी का स्वर्णहार बरामद हुआ था, किंतु राजकुमारी चक्रसेना की साक्षी उसे निर्दोष साबित कर रही थी| राजा नहीं चाहता था कि कोई परदेसी उसके न्याय के प्रति अपने मन में शंका पैदा करे, अत: अब उसे एक ही उपाय सुझाई दिया| उसने अपने आदमी समुद्र तट पर यह आदेश देकर भेजे कि यदि उस मृत व्यक्ति का शव अब भी वहां मौजूद हो तो वे उसे सावधानीपूर्वक वहां ले आएं|

 

राजा के आदेश का पालन हुआ| राजकर्मचारी बड़ी सुरक्षा के साथ उस फूले हुए शव को ले आए| यद्यपि लाश विकृत हो चुकी थी, तथापि राजकुमारी ने उसे देखते ही पहचान लिया| वह बोली – हां पिताश्री! यही है वह व्यक्ति, जो मेरे हार को चोरी करके भागा था|

 

यह सुनकर राजा को वस्तुस्थिति का बोध होने लगा| उसने सोचा – ‘जब यह चोर राजकुमारी का हार चुराकर भाग रहा था तो राजकुमारी ने यकीनन उसे पकड़ने के लिए शोर मचाया होगा| शोर सुनकर सुरक्षा प्रहरी इस चोर के पीछे दौड़े होंगे| कोई उपाय न देखकर चोर को यही सूझा होगा कि वह समुद्र में कूद कर सुरक्षाकर्मियों की निगाहों से ओझल हो जाए, किंतु उसका यह प्रयास असफल हो गया| वह कुछ गहरी डुबकी लगा गया होगा, जिसके कारण डूबने से उसकी मृत्यु हो गई| बाद में पानी भर जाने से उसकी लाश फूल गई और वह समुद्र के जल में तैरने लगी| इस लाश पर बैठकर इस अजनबी ने तट तक यात्रा की| परिणामस्वरूप वह हार, जिसे चोर ने अपनी मुट्ठी में दबा रखा था, अजनबी की धोती में उलझ गया और इस प्रकार वह उस तक पहुंच गया|’

 

स्थिति स्पष्ट होते ही राजा को वास्तविकता का बोध हो गया| उसने तत्काल समुद्रशूर की रिहाई के आदेश दे दिए| इतना ही नहीं, उसके आदेश के कारण जितने समय तक समुद्रशूर को कारावास में रहना पड़ा, उसके लिए भी राजा ने क्षमा मांगी| तत्पश्चात उसे अनेक उपहार देकर अपने देश को भिजवा दिया| इस प्रकार एक लाश की गवाही समुद्रशूर के लिए एक वरदान बन गई|

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