दुर्योधन् और उसकी पत्नी भानुमति की अनसुलझी कहानी
Duryodhan aur uski patni Bhanumati ki ansuljhi kahani
भानुमति काम्बोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री थी, राजा ने इनके लिए विवाह का स्वयंवर रखा। स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध, रुक्मी, वक्र और दुर्योधन-कर्ण समेत कई राजा आमंत्रित थे। जब भानुमति हाथ में माला लेके अपनी दासियों और अंगरक्षकों के साथ दरबार में आई तो दुर्योधन की उसे देख बांछे खिल उठी।
भानुमति दुर्योधन के सामने आके रुकी और रुक कर फिर आगे बढ़ गई, ये बात दुर्योधन को हजम नहीं हुई और वो भानुमति की तरफ लपका और वरमाला जबरदस्ती अपने गले में डाल ली, इस बात पर विरोध हुआ तो दुर्योधन ने सब योद्धाओ से कर्ण से युद्ध की चुनौती दी जिसमे कर्ण ने सभी को परास्त कर दिया। जबकि जरासंध से जबरदस्त युद्द हुआ, और उसका परिणाम।।।
जरासंध ने दुर्योधन की बीवी भानुमति के स्वयंवर में भी भाग लिया और जब दुर्योधन जबरन भानुमति को अपनी पत्नी बनाना चाह रहा था तब जरासंध और कर्ण में 21 दिन युद्ध चला जिसमे कर्ण जीता और पुरस्कार में उसने कर्ण को मालिनी का राज्य दे दिया। ये जरासंध की सबसे बड़ी पहली हार थी
भानुमति को हस्तिनापुर ले आने के बाद दुर्योधन ने उसे ये कह के सही ठहराया की भीष्म पितामह भी अपने सौतेले भाइयो के लिए अम्बा अम्बिका और अम्बालिका का हरणं कर के यहां लेकर आये थे। इस बात से भानुमति भी मान गई और दोनों ने विवाह कर लिया। इनके दो संतान हुई पुत्र लक्ष्मण था जिसे अभिमन्यु ने युद्ध में मारा और पुत्री लक्ष्मणा जिसका विवाह कृष्ण के जाम्वन्ति से जन्मे पुत्र साम्ब से विवाह हुआ।
इसी लिए कहावत बनी की भानुमति ने दुर्योधन को पति चुना नहीं दुर्योधन ने जबरदस्ती की शादी। अपने दम पर नहीं कर्ण के दम पर किया भानुमति का हरण, बेटी लक्ष्मणा को कृष्ण पुत्र साम्ब भगा ले गया और इस प्रकार की विस्मृतियो के कारण ये कहावत चरिर्तार्थ होती है
आपको बता दे की दुर्योधन भानुमति पर बेहद विश्वास करता था, और जब एक बार भानुमति और कर्ण शतरंज खेल रहे थे। भानुमति हार रही थी तो कर्ण प्रसन्न था, तभी इतने में दुर्योधन के आये की आहात हुई तो भानुमति सहसा ही खेल छोड़ के उठाने लगी तो कर्ण को लगा की वो हार के डर से यह भाग रही है!
इस कारण उसने उनका अंचल झपटा, एवं अचानक ही किये गई इस हरकत से भानुमति का अंचल फट गया और उसके सार मोती भी वंही बिखर गए। ऐसा हुआ ही था की कर्ण को भी दुर्योधन आता हुआ दिखाई दिया। और दोनों शर्म से मरे जा रहे थे उन्हें डर सत्ता रहा था की अब दुर्योधन क्या समझेगा
लेकिन जब दुर्योधन पास आया तो दोनों उससे आँख नहीं मिला पा रहे थे, तब दुर्योधन ने हंस के कहा की मोती बिखरे रहने दोगे या मैं तुम्हारी मदद करू मोती समेटने में। ये बात तो दुर्योधन के चरित्र में चार चाँद लगाती है की वो अपने परम मित्र कर्ण और अपनी जबरदस्ती शादी की हुई पत्नी पर कितना विश्वास करता था।
एक बात और भानुमति बेहद ही सुन्दर आकर्षक तेज बुद्धि और शरीर से काफी ताकतवर थी, और गंधारी ने सती पर्व में बताया है की भानुमति दुर्योधन से खेल खेल में ही खुश्ती करती थी और उसमे दुर्योधन उससे कई बार हार भी जाता था।
जब दुर्योधन और पुत्र की मौत का भानुमति को गहरा धक्का लगा जबकि उसके बाद भी उसने पांडवो में से एक अर्जुन से भी शादी कर ली थी।