कैसे शुरू हुआ और किसने शुरू किया सबसे पहला श्राद्ध
Kese Shuru hua aur kisne shuru kiya sapse pehla Shradh
आपको बता दे कि महाभारत के मुताबित सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महातपस्वी अत्रि मुनि ने महर्षि निमि को दिया था। इस तरह पहले निमि ने श्राद्ध का प्रारम्भ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। और फिर धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करने से देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।
लेकिन श्राद्ध का भोजन पितर लगातार करने से इनको अजीर्ण (भोजन न पचना) रोग हो गया और इससे उन्हें कष्ट होने लगा। तभी सब ब्रह्माजी के पास में गए और उनसे कहा कि श्राद्ध का अन्न खाने से हमे अजीर्ण रोग हो गया है, इसकारण हमें कष्ट हो रहा है, आप हमारा कल्याण करे।
और देवताओं की ये बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा मेरे निकट ये अग्निदेव बैठे हुए है ये ही आप सभी कल्याण करेंगे। अग्निदेव ने कहा कि अब से श्राद्ध में हम सभी लोग साथ में ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का ये अजीर्ण रोग दूर हो जाएगा। यह बात सुनकर देवता व पितर बहूत प्रसन्न हुए। इसकारण श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि को भोग दिया जाता है।
इसी के चलते महाभारत में कहा है कि अग्नि में हवन करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है, उसे तो ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते। श्राद्ध के वक्त अग्निदेव को वहां उपस्थित देखकर सभी राक्षस वहां से भाग जाते हैं। इसी अनुसार कहा गया है कि सबसे पहले पिता को, इसके बाद दादा को और फिर परदादा को पिंड देना चाहिए। और यही श्राद्ध की सही विधि है। प्रत्येक पिंड देते वक्त एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए।
एक बात ध्यान रखे कि रजस्वला स्त्री को श्राद्ध का भोजन बनने के लिए नहीं रखना चाहिए। हमेशा याद रखे कि तर्पण करते वक्त पिता-पितामह आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए। किसी नदी के किनारे पर पहुंचने के बाद पितरो को पिंडदान और तर्पण आवश्य करना चाहिए। सबसे पहले अपने सभी कुल के पितरों को जल से तृप्त करने के बाद मित्रों और संबंधियों को जलांजलि देनी चाहिए। चितकबरे बैलों से जुती हुई गाड़ी में बैठकर नदी पार करते वक्त बैलों की पूंछ से पितरों का तर्पण करना चाहिए इसीलिए पितर ऐसे तर्पण की अभिलाषा जरूर रखते हैं।
नाव में बैठकर नदी पार करने वालों को भी पितरों का तर्पण करना बहुत जरुरी है। जो तर्पण के महत्व को जानते हैं, वे नाव में बैठने पर एकाग्रचित्त हो अवश्य ही पितरों का जलदान करते हैं। कृष्णपक्ष में जब महीने का आधा समय बीत जाए, उस दिन मतलब अमावस्या के दिन श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
आपको बता दे कि पितरों की भक्ति से ही मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है। जो भी मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिंडदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से जल्द ही छुटकारा पा जाते हैं।
महाभारत के मुताबित श्राद्ध में जो तीन पिंडों का विधान है, उनमें से पहले को जल में डाल देना चाहिए। दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए और तीसरे पिंड की अग्नि में छोड़ देना चाहिए, यही श्राद्ध करने का विधान है। जो इसका पालन करता है उसके पितर सदा ही प्रसन्नचित्त और संतुष्ट रहते हैं और उसका दिया हुआ दान भी अक्षय होता है।