दया का फल
Daya ka Fal
अरब देश में सुबुक्तीन नामक एक बादशाह राज्य करता था ।
युवावस्था में वह एक सिपाही था । उसे शिकार का बहुत शौक था । जब भी समय मिलता वह शिकार के लिये निकल जाता ।
एक दिन शिकार की खोज में वह बहुत देर तक भटकता रहा । किन्तु उसे कुछ हाथ न लगा । निराश हुआ वह वापस लौट रहा था तो उसने देखा कि एक हिरनी अपने छोटे से बच्चे के पास खड़ी होकर उसे प्यार कर रही है ।
सुबुक्तीन को लगा खाली हाथ लौटने से तो अच्छा है कि कुछ ही हाथ लग जाये । वह घोड़े से उतर गया । हिरनी तो आहट सुनकर झाड़ियों में छिप गयी परन्तु इतना छोटा बच्चा उतनी फुर्ती नहीं दिखा पाया । सुबुक्तीन ने उस बच्चे को बाँधकर घोड़े पर रख लिया और चल पड़ा ।
ममता के कारण हिरनी घोड़े के पीछे पीछे चलने लगी । बहुत दूर जाने के बाद सुबुक्तीन ने पीछे मुड़कर देखा तो हिरनी पीछे आ रही थी । उसे हिरनी पर दया आ गयी और उसने बच्चे को छोड़ दिया । बच्चा पाकर हिरनी बहुत प्रसन्न हुई ।
उस रात सुबुक्तीन ने स्वप्न में देखा एक देवदूत उसे कह रहा है कि तूने आज एक असहाय पशु पर दया की है, इसलिये खुदा ने तेरा नाम बादशाहों की सूची में लिख दिया है । तू अवश्य एक दिन बादशाह बनेगा ।
उसका सपना सच हो गया वह उन्नति करता हुआ सैनिक से बादशाह बन गया ।