Hindi Poem of Sumitranand Pant “Moh ”, “मोह” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मोह -सुमित्रानंदन पंत Moh – Sumitranand Pant   छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस …

Hindi Poem of Sumitranand Pant “Anubhuti ”, “अनुभूति ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत Anubhuti – Sumitranand Pant तुम आती हो, नव अंगों का शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो। बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम, सांसों में थमता स्पंदन-क्रम, तुम आती हो, अंत:स्थल …

Hindi Poem of Sumitranand Pant “Bapu Ke Prati ”, “बापू के प्रति” Complete Poem for Class 10 and Class 12

बापू के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Bapu Ke Prati – Sumitranand Pant तुम मांस-हीन, तुम रक्त-हीन, हे अस्थि-शेष! तुम अस्थि-हीन, तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुराण, हे चिर नवीन! …

Hindi Poem of Sumitranand Pant “Mahatma Ji Ke Prati ”, “महात्मा जी के प्रति” Complete Poem for Class 10 and Class 12

महात्मा जी के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Mahatma Ji Ke Prati – Sumitranand Pant निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय!– जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल,– गत …

Hindi Poem of Ramdhari Singh Dinkar “Samar Shesh hai”, “समर शेष है” Complete Poem for Class 10 and Class 12

समर शेष है -रामधारी सिंह दिनकर Samar Shesh hai -Ramdhari Singh Dinkar   ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो , किसने कहा, युद्ध की बेला चली गयी, …

Hindi Poem of Ramdhari Singh Dinkar “Ho Kaha Agnidharma Navin Rishiyon”, “हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों -रामधारी सिंह दिनकर Ho Kaha Agnidharma Navin Rishiyon -Ramdhari Singh Dinkar   कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद कहां से …

Hindi Poem of Ramdhari Singh Dinkar “Sipahi ”, “सिपाही ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

सिपाही -रामधारी सिंह दिनकर Sipahi -Ramdhari Singh Dinkar वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ, ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्यों ही, कभी न …

Hindi Poem of Ramdhari Singh Dinkar “Vatayan”, “वातायन ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

वातायन -रामधारी सिंह दिनकर Vatayan -Ramdhari Singh Dinkar मैं झरोखा हूँ। कि जिसकी टेक लेकर विश्व की हर चीज़ बाहर झाँकती है। पर, नहीं मुझ पर, झुका है विश्व तो …