मोर बनने की चाहत में कौए की हुई दुर्गति
Mor banne ki chahat me kove ki hui durgati
एक कौआ जब-जब मोरों को देखता, मन में कहता- भगवान ने मोरों को कितना सुंदर रूप दिया है। यदि मैं भी ऐसा रूप पाता तो कितना मजा आता।
एक दिन कौए ने जंगल में मोरों की बहुत सी पूंछें बिखरी पड़ी देखीं। वह अत्यंत प्रसन्न होकर कहने लगा- वाह भगवान! बड़ी कृपा की आपने, जो मेरी पुकार सुन ली। मैं अभी इन पूंछों से अच्छा खासा मोर बन जाता हूं। इसके बाद कौए ने मोरों की पूंछें अपनी पूंछ के आसपास लगा ली। फिर वह नया रूप देखकर बोला- अब तो मैं मोरों से भी सुंदर हो गया हूं। अब उन्हीं के पास चलकर उनके साथ आनंद मनाता हूं। वह बड़े अभिमान से मोरों के सामने पहुंचा। उसे देखते ही मोरों ने ठहाका लगाया। एक मोर ने कहा- जरा देखो इस दुष्ट कौए को। यह हमारी फेंकी हुई पूंछें लगाकर मोर बनने चला है। लगाओ बदमाश को चोंचों व पंजों से कस-कसकर ठोकरें। यह सुनते ही सभी मोर कौए पर टूट पड़े और मार-मारकर उसे अधमरा कर दिया। कौआ भागा-भागा अन्य कौए के पास जाकर मोरों की शिकायत करने लगा तो एक बुजुर्ग कौआ बोला- सुनते हो इस अधम की बातें! यह हमारा उपहास करता था और मोर बनने के लिए बावला रहता था। इसे इतना भी ज्ञान नहीं कि जो प्राणी अपनी जाति से संतुष्ट नहीं रहता, वह हर जगह अपमान पाता है। आज यह मोरों से पिटने के बाद हमसे मिलने आया है। लगाओ इस धोखेबाज को कसकर मार। इतना सुनते ही सभी कौओं ने मिलकर उसकी अच्छी मरम्मत की। कथा का सार यह है कि ईश्वर ने हमें जिस स्वरूप में बनाया है, उसी में संतुष्ट रहकर अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए।