भगवान महावीर
Bhagwan Mahavir
पंचशील सिद्धान्त के प्रर्वतक एवं जैन धर्म के चौबिसवें तीर्थकंर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। जिस युग में हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव का बोलबाला था उसी युग में भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा जैसे खास उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से मनुष्यों का सही मार्गदर्शन किया। नवीन शोध के अनुसार जैन धर्म की स्थापना वैदिक काल में हुई थी। जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक ऋषभदेव थे। महावीर स्वामी ने जैन धर्म में अपेक्षित सुधार करके इसका व्यापक स्तर पर प्रचार किया।
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली (बीहार) के निकट कुण्डग्राम में क्षत्रिय परिवार में हुआ था। बचपन का नाम वर्धमान था। पिता सिद्धार्थ, जो कुण्डग्राम के राजा थे एवं माता त्रिशला का संबन्ध भी राजघराने से था। राजपरिवार में जन्म होने के कारण महावीर स्वामी का प्रारम्भिक जीवन सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण बीता। पिता की मृत्यु के पश्चात 30 वर्ष की आयु में इन्होने सन्यास ग्रहण कर लिया और कठोर तप में लीन हो गये। ऋजुपालिका नदि के तट पर सालवृक्ष के नीचे उन्हे ‘कैवल्य’ ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई जिसके कारण उन्हे ‘केवलिन’ पुकारा गया। इन्द्रियों को वश में करने के कारण ‘जिन’ कहलाये एवं पराक्रम के कारण ‘महावीर’ के नाम से विख्यात हुए।
जैन धर्म, महावीर स्वामी के समय में कोशल, विदेह, मगध, अंग, काशी, मिथला आदि राज्यों में लोकप्रिय हो गया था। मौर्यवंश व गुप्त वंश के शासनकाल के मध्य में जैन धर्म पूर्व में उङिसा से लेकर पश्चिम में मथुरा तक फैला था। महावीर स्वामी की मृत्यु के लगभग दो सौ वर्ष पश्चात जैन धर्म मुख्यतः दो सम्प्रदाय में बंट गया, (1) दिगम्बर जैन और (2) श्वेताम्बर जैन।
श्वेताम्बर जैन मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं जबकि दिगम्बर जैन मुनियों के लिये नग्न रहना आवश्यक है। जैन धर्म ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न पक्षों को बहुत प्रभावित किया है। दर्शन, कला, और साहित्य के क्षेत्र में जैन धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है। जैन धर्म में वैज्ञानिक तर्कों के साथ अपने सिद्धान्तो को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है। अहिंसा का सिद्धान्त जैन धर्म की मुख्य देन है। महावीर स्वामी ने पशु-पक्षी तथा पेङ-पौधे तक की हत्या न करने का अनुरोध किया है। अहिंसा की शिक्षा से ही समस्त देश में दया को ही धर्म प्रधान अंग माना जाता है।
जैन धर्म से प्रेरित होकर कई राजाओं ने निर्धन वर्ग के लिये औषधालयों, विश्रामालयों एवं पाठशालाओं का निर्माण करवाया। जैन धर्म के 24 तीर्थकंरों के नाम इस प्रकार हैः- 1.ऋषभदेव, 2. अजीतनाथ, 3.सम्भवनाथ, 4.अभिनन्दन, 5.सुमतिनाथ, 6.पद्मप्रभु, 7.सुपार्श्वनाथ, 8.चन्द्रप्रभु, 9.सुविधि, 10.शीतल, 11.श्रेयांश, 12.वासुपुज्य, 13.विमल, 14.अनन्त, 15.धर्म, 16.शान्ति, 17.कुन्थ, 18.अर, 19.मल्लि, 20.मुनि सुब्रत, 21.नेमिनाथ, 22.अरिष्टनेमि, 23.पार्श्वनाथ, 24.महावीर स्वामी।
महावीर स्वामी ने समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था का विरोध किया था। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। महावीर का ‘जीयो और जीने दो’ का सिद्धांत जनकल्याण की भावना को परिलाक्षित करता है।