सहमते स्वर-1
Sahamte Swar 1
मालवा में जा बसा
लखनऊ लौटा तो
नए नखत टँके दिखे
वक़्त के गरेबाँ में।
अनायास याद आई
बूढ़ी जीवन संगिनी की
जिसका सब रस लेकर
आज भी मैं छलक रहा
सहमते स्वर-1
Sahamte Swar 1
मालवा में जा बसा
लखनऊ लौटा तो
नए नखत टँके दिखे
वक़्त के गरेबाँ में।
अनायास याद आई
बूढ़ी जीवन संगिनी की
जिसका सब रस लेकर
आज भी मैं छलक रहा