Hindi Poem of Dushyant Kumar “ Kuntha“ , “कुण्ठा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कुण्ठा

 Kuntha

 

मेरी कुंठा

रेशम के कीड़ों-सी

ताने-बाने बुनती,

तड़प तड़पकर

बाहर आने को सिर धुनती,

स्वर से

शब्दों से

भावों से

औ’ वीणा से कहती-सुनती,

गर्भवती है

मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती!

बाहर आने दूँ

तो लोक-लाज मर्यादा

भीतर रहने दूँ

तो घुटन, सहन से ज़्यादा,

मेरा यह व्यक्तित्व

सिमटने पर आमादा।

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