Hindi Poem of Virendra Mishra “Pratiksha ki samiksha“ , “प्रतीक्षा की समीक्षा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

प्रतीक्षा की समीक्षा

Pratiksha ki samiksha

पर जिसको आना था

वह नहीं आया

– व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।

सहन में फिर उतरा पीला-सा हाशिया

साधों पर पाँव धरे चला गया डाकिया

और रोज़-जैसा

मटमैला दिन गुज़रा

गीत नहीं गाया

– व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।

भरे इंतज़ारों से एक और गठरी

रह-रहकर ऊंघ रही है पटेल नगरी

अधलिखी मुखरता

कह ही तो गई वाह!

ख़ूब गुनगुनाया

-व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।

खिडकी मैं बैठा जो गीत है पुराना

देख रहा पत्रों का उड़ रहा खज़ाना

पूछ रहा मुझसे

पतझर के पत्तों में

कौन है पराया

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