Hindi Poem of Dushyant Kumar “  Holi ki thitholi“ , “होली की ठिठोली” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

होली की ठिठोली

 Holi ki thitholi

 

पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर ।

संपादकी का हक़ तो अदा कीजिए हुज़ूर ।

अब ज़िंदगी के साथ ज़माना बदल गया,

पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिए हुज़ूर ।

कल मयक़दे में चेक दिखाया था आपका,

वे हँस के बोले इससे ज़हर पीजिए हुज़ूर ।

शायर को सौ रुपए तो मिलें जब ग़ज़ल छपे,

हम ज़िन्दा रहें ऐसी जुगत कीजिए हुज़ूर ।

लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप,

शी! होंठ सिल के बैठ गए ,लीजिए हुजूर ।

धर्मयुग सम्पादक टू दुष्यंत कुमार

(धर्मवीर भारती का उत्तर बक़लम दुष्यंत कुमार)

जब आपका ग़ज़ल में हमें ख़त मिला हुज़ूर ।

पढ़ते ही यक-ब-यक ये कलेजा हिला हुज़ूर ।

ये \”धर्मयुग\” हमारा नहीं सबका पत्र है,

हम घर के आदमी हैं हमीं से गिला हुज़ूर ।

भोपाल इतना महँगा शहर तो नहीं कोई,

महँगी का बाँधते हैं हवा में किला हुज़ूर ।

पारिश्रमिक का क्या है बढ़ा देंगे एक दिन,

पर तर्क आपका है बहुत पिलपिला हुज़ूर ।

शायर को भूख ने ही किया है यहाँ अज़ीम,

हम तो जमा रहे थे यही सिलसिला हुज़ूर ।

 

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