मृत्यु
Mrityu
उसकी उमर ही क्या है!
मेरे ही सामने की
उसकी पैदाइश है!
पीछे लगी रहती है मेरे
कि टूअर-टापर वह
मुहल्ले के रिश्ते से मेरी बहन है!
चौके में रहती हूँ तो
सामने मार कर आलथी-पालथी
आटे की लोई से चिड़िया बनाती है!
आग की लपट जैसी उसकी जटाएँ
मुझ से सुलझती नहीं लेकिन
पेशानी पर उसकी
इधर-उधर बिखरी
दीखती हैं कितनी सुंदर!
एक बूंद चम-चम पसीने की
गुलियाती है धीरे-धीरे पर
टपके- इसके पहले
झट पोंछ लेती है उसको वह
आस्तीन से अपने ढोल-ढकर कुरते के!
कम से कम पच्चीस बार
इसी तरह
हमको बचाने की कोशिश करती है।
हमारे टपकने के पहले!
कभी कभी वह
लगा देती है झाड़ू घरों में!
जिनके कोई नहीं होता
उन कातर वृद्धाओं की
कर देती है जम कर खूब तेल-मालिश।
दिन-दिन भर उनसे बतियाती है जो सो!
जब किसी को ओठ गोल किए
कुछ बोलते देखें गडमड
समझ लें- वह खड़ी है वहीं
या ऊंघ रही है वहीं खटिया के नीचे
छोटा-सा पिल्ला गोद में लिये!
बडे़ रोब से घूमती है वह
इस पूरे कायनात में।
लोग अनदेखा कर देते हैं उसको
पर उससे क्या?
वह तो है लोगों की परछाईं!
और इस बात से किसको होगा भला इनकार
आप लांघ सकते हैं सातों समुंदर
बस अपनी परछाईं नहीं लांघ सकते ।