Hindi Poem of Giridhar “Chinta jwal sarir ki“ , “चिंता ज्वाल सरीर की” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

चिंता ज्वाल सरीर की
Chinta jwal sarir ki

 

चिंता ज्वाल सरीर की, दाह लगे न बुझाय।
प्रकट धुआं नहिं देखिए, उर अंतर धुंधुवाय॥

उर अंतर धुंधुवाय, जरै जस कांच की भट्ठी।
रक्त मांस जरि जाय, रहै पांजरि की ठट्ठी॥

कह ‘गिरिधर कविराय, सुनो रे मेरे मिंता।
ते नर कैसे जियै, जाहि व्यापी है चिंता॥

 

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