Hindi Poem of Kumar vishvas “Ho kaal gati se pare chintan“ , “हो काल गति से परे चिरंतन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हो काल गति से परे चिरंतन
Ho kaal gati se pare chintan

हो काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।
न द्वारका में मिलें बिराजे,
बिरज की गलियों में भी नहीं हो।
न योगियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो।
तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यही हो।

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