अभी भी बचे हैं
Abhi bhi bache he
अभी भी बचे हैं
कुछ आख़िरी बेचैन शब्द
जिनसे शुरू की जा सकती है कविता
बची हुई हैं
कुछ उष्ण साँसे
जहाँ से सम्भव हो सकता है जीवन
गर्म राख़ कुरेदो
तो मिल जाएगी वह अन्तिम चिंगारी
जिससे सुलगाई जा सकती है फिर से आग ।
अभी भी बचे हैं
Abhi bhi bache he
अभी भी बचे हैं
कुछ आख़िरी बेचैन शब्द
जिनसे शुरू की जा सकती है कविता
बची हुई हैं
कुछ उष्ण साँसे
जहाँ से सम्भव हो सकता है जीवन
गर्म राख़ कुरेदो
तो मिल जाएगी वह अन्तिम चिंगारी
जिससे सुलगाई जा सकती है फिर से आग ।