Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Raas rasotav“ , “रास-रसोत्सव” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

रास-रसोत्सव
Raas rasotav

मुरली मोहन की बजी जमुना-तट पै ‘व्यास’।
जल थंभ्यौ, चन्दा रुक्यौ, हहर उठ्यौ आकास॥
हहर उठ्यौ आकास, लगे बतरावन तारे॥
कौन राग अनुरागत ब्रज में नंद-दुलारे।
अघटित घटना घटी ब्रह्म-रंध्रन सुर जुरली।
जब लीनी धर-अधर जोगमाया-सी मुरली॥

बंसी बजी कि बज उठे मन-बीना के तार।
ये समझीं संकेत है, वे अनहद संचार॥
वे अनहद संचार, जीव कौं ब्रह्म जगावत।
ये समझीं घनश्याम हमहिं कौं टेर बुलावत॥
पगन लगि गए पंख, उड़ीं जैसें कलहंसी।
हे मनमोहन ‘व्यास’ बजाई कैसी बंसी?

मोर मुकुट छवि, काछनी, उर झूलत बनमाल।
नटनागर मन में बसे रासबिहारी लाल ॥
रासबिहारी लाल, नचत तत तत ता थेई।
तग्गी-तग्गी संगत श्यामा सुंदरि देई॥
धुमकिट-धिकट धिलांग मृदंगैं बजै ‘व्यास’ कवि।
लट-पट की फहरान मनहरन मोर-मुकुट छवि॥

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