नहाऊँ मैं!
Nahau me
तुम कहती हो कि नहाऊँ मैं!
क्या मैंने ऐसे पाप किए,
जो इतना कष्ट उठाऊँ मैं?
क्या आत्म-शुद्धि के लिए?
नहीं, मैं वैसे ही हूँ स्वयं शुद्ध,
फिर क्यों इस राशन के युग में,
पानी बेकार बहाऊँ मैं?
यह तुम्हें नहीं मालूम
डालडा भी मुश्किल से मिलता है,
मैं वैसे ही पतला-दुबला
फिर नाहक मैल छुडाऊँ मैं?
औ’ देह-शुद्धि तो भली आदमिन,
कपड़ों से हो जाती है!
ला कुरता नया निकाल
तुझे पहनाकर अभी दिखाऊँ मैं!
“मैं कहती हूँ कि जनम तुमने
बामन के घर में पाया क्यों?
वह पिता वैष्णव बनते हैं
उनका भी नाम लजाया क्यों?”
तो बामन बनने का मतलब है
सूली मुझे चढ़ा दोगी?
पूजा-पत्री तो दूर रही
उल्टी यह सख्त सजा दोगी?
बामन तो जलती भट्ठी है,
तप-तेज-रूप, बस अग्निपुंज!
क्या उसको नल के पानी से
ठंडा कर हाय बुझा दोगी?
यह ज्वाला हव्य मांगती है-
घी, गुड़, शक्कर, सूजी, बदाम
क्या आज नाश्ते में मुझको
तुम मोहनभोग बना दोगी?
“बस, मोहनभोग, मगद, पापड़ ही,
सदा जीभ पर आते हैं।
स्नान, भजन, पूजा, संध्या
सब चूल्हे में झुंक जाते हैं।”
तो तुम कहती हो-मैं स्नान,
भजन, पूजन, सब किया करूँ
जो औरों को उपदेश करूँ,
उसका भी खुद व्रत लिया करूँ?
प्रियतमे! गलत सिद्धांत,
एक कहते हैं, दूजे करते हैं!
तुम स्वयं देख लो युद्ध-भूमि में
सेनापति कब मरते हैं?
हिटलर बाकी, चर्चिल बाकी,
बाकी द्रूमैन बिचारा है।
तब तुम्हीं न्याय से कहो
कौन ऐसा अपराध हमारा है?
मैं औरों के कंधों से ही
बंदूक चलाया करता हूँ।
यह धर्म, कर्म, व्रत, नियम
नहीं मैं घर में लाया करता हूँ।
फिर तुम तो मुझे जानती हो
मैं सदा झिकाया करता हूँ।
कार्तिक से लेकर चैत तलक
मैं नहीं नहाया करता हूँ।