Hindi Poem of Tabish Kamal “ Ajeeb subah thi divar o dar kuch aur se the” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे

 Ajeeb subah thi divar o dar kuch aur se the

निगाह देख रही थी कि घर कुछ और से थे

वो आशियाने नहीं थे जहाँ पे चिड़ियाँ थीं

शजर कुछ और से उन पर समर कुछ और से थे

तमाम कश्तियाँ मंजधार में घिरी हुई थीं

हर एक लहर में बनते भँवर कुछ और से थे

बहुत बदल गया मैदान-ए-जंग का नक़्शा

वो धड़ कुछ और से थे उन पे सर कुछ और से थे

मिरे हलीफ़ मिरे साथ थे लड़ाई में

हर एक शख़्स के तेवर मगर कुछ और से थे

कई पड़ाव थे मंज़िल की राह में ‘ताबिश’

मिरे नसीब में लेकिन सफ़र कुछ और से थे

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