Hindi Poem of Bhawani Prasad Mishra “ Vani ki Dinta“ , “वाणी की दीनता” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

वाणी की दीनता

Vani ki Dinta

 

अपनी मैं चीन्हता!

कहने में अर्थ नहीं

कहना पर व्यर्थ नहीं

मिलती है कहने में

एक तल्लीनता!

आस पास भूलता हूँ

जग भर में झूलता हूँ

सिन्धु के किनारे जैसे

कंकर शिशु बीनता!

कंकर निराले नीले

लाल सतरंगी पीले

शिशु की सजावट अपनी

शिशु की प्रवीनता!

भीतर की आहट भर

सजती है सजावट पर

नित्य नया कंकर क्रम

क्रम की नवीनता!

कंकर को चुनने में

वाणी को बुनने में

कोई महत्व नहीं

कोई नहीं हीनता!

केवल स्वभाव है

चुनने का चाव है

जीने की क्षमता है

मरने की क्षीणता!

 

 

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