Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Ab agar hamse khudai bhi khafa ho jaye“ , “अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए

 Ab agar hamse khudai bhi khafa ho jaye

अब अगर हमसे ख़ुदाई भी खफ़ा हो जाए

गैर-मुमकिन है कि दिल दिल से जुदा हो जाए

जिस्म मिट जाए कि अब जान फ़ना हो जाए

गैर-मुमकिन है…

जिस घड़ी मुझको पुकारेंगी तुम्हारी बाँहें

रोक पाएँगी न सहरा की सुलगती राहें

चाहे हर साँस झुलसने की सज़ा हो जाए

गैर-मुमकिन है…

लाख ज़ंजीरों में जकड़ें ये ज़माने वाले

तोड़ कर बन्द निकल आएँगे आने वाले

शर्त इतनी है कि तू जलवा-नुमाँ हो जाए

गैर-मुमकिन है…

ज़लज़ले आएँ गरज़दार घटाएँ घेरें

खंदकें राह में हों तेज़ हवाएँ घेरें

चाहे दुनिया में क़यामत ही बपा हो जाए

गैर-मुमकिन है…

 

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