अनुत्तर योग
Anuttar yog
हवा को हमारे शब्द
शायद आसमान में
हिला जाते हैं
मगर हमें उनका उत्तर नहीं मिलता
बंद नहीं करते
तो भी हम प्रार्थना
मंद नहीं करते हम
अपने प्रणिपातों की गति
धीरे धीरे
सुबह-शाम ही नहीं
प्रतिपल
प्रार्थना का भाव
हम में जागता रहे
ऐसी एक कृपा हमें मिल जाती है
खिल जाती है
शरीर की कँटीली झाड़ी
प्राण बदल जाते हैं
तब वे शब्दों का उच्चारण नहीं करते
तल्लीन कर देने वाले स्वर गाते हैं
इसलिए मैं प्रार्थना छोड़ता नहीं हूँ
उसे किसी उत्तर से जोड़ता नहीं हूँ!