Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Aao ki koi khwab bune“ , “आओ कि कोई ख़्वाब बुनें” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

आओ कि कोई ख़्वाब बुनें

 Aao ki koi khwab bune

आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते

वरना ये रात आज के संगीन दौर की

डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ-दिल

ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें

गो हम से भागती रही ये तेज़-गाम उम्र

ख़्वाबों के आसरे पे कटी है तमाम उम्र

ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब, होंठों के ख़्वाब, और बदन के ख़्वाब

मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब, कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब

तहज़ीब-ए-ज़िन्दगी के, फ़रोग़-ए-वतन के ख़्वाब

ज़िन्दाँ के ख़्वाब, कूचा-ए-दार-ओ-रसन के ख़्वाब

ये ख़्वाब ही तो अपनी जवानी के पास थे

ये ख़्वाब ही तो अपने अमल के असास थे

ये ख़्वाब मर गये हैं तो बे-रंग है हयात

यूँ है कि जैसे दस्त-ए-तह-ए-सन्ग है हयात

आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते

वरना ये रात आज के संगीन दौर की

डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ-दिल

ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें

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